श्रेष्ठ अथवा आर्य किसे कहा जा सकता है।। Arya Kise Kahte Hai.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, सहज भाषा में कहें तो जो लोग दूसरों का अभ्युदय देखकर प्रसन्न होते हैं। साथ ही जो लोग सदा हरिनाम परायण में ही लगे रहते हैं। ऐसे लोग ही श्रेष्ठ अथवा आर्य कहे जाते हैं। भगवान कि लीलामयी मूर्ति अत्यंत ही कीर्तनीय होती है। इसीलिए सन्तजन कहते हैं, कि जिसकी भी बुद्धि उन लीलामयी मूर्ति में लग जाती है, उनके सारे पाप एवं ताप स्वयं दूर हो जाते है।।
अत: जो कोई भी भगवान की मंगलमयी मंजुलकथा को भक्ति भाव से सुनता या सुनाता है। तथा जो लोग अनन्य भाव से भगवद्भजन-कीर्तन करते हैं, वो निश्चित ही परम भागवत होते हैं। श्रीमद भागवत जी कि कथा का श्रवण जो लोग सहज भाव से करते हैं उन्हें तो वे अंर्तमयी परम दयालु परमात्मा अपना परम पद ही दे देते हैं।।
संसार में पशुओं को छोड़कर अपने पुरूषार्थ का सार जानने वाला ऐसा कौन सा पुरूष होगा? जो संसार के सम्पूर्ण सुखों को देने वाले भागवत जी की अमृतमयी कथाओं में से किसी एक कथा का भी अपने कर्णपुटों से एक बार रसपान करके फिर उनकी ओर से अपना मन हटा ले, अर्थात् ऐसा कोई नहीं होगा। जो लोग दूसरों का अभ्युदय देखकर प्रसन्न होते हैं एवं सदा हरिनाम परायण में ही लगे रहते हैं। ऐसे ही लोग श्रेष्ठ अथवा आर्य कहे जाते हैं।।
जिन्होंने भगवान कि लीलाओं के गुणगान तथा श्रवण को ही, अपने कर्म का सार तथा अपने जीवन का रस मान लिया है। वे ही श्रेष्ठ भगवत भक्त होते हैं। यह एक और विचारणीय प्रश्न है, कि पृथ्वी कैसे लोगों के भार से पीडि़त रहती है? इस बात को भागवत जी में पृथ्वी देवी स्वयं ब्रम्हा जी से कहती है, कि जो भगवान नारायण की भक्ति से विमुख है तथा जो श्री भगवान के भक्तों की निंदा करते हैं। उन महापातक मनुष्यों का भार वहन करने में मैं सदा सर्वदा असमर्थ हूँ।।
जो व्यक्ति अपने धर्म व आचार से रहित तथा नित्य कर्म से भी हीन होता है। जिनकी बुद्धि में श्रद्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है। माता पृथ्वी कहती है, मैं उनके भार से सदा पीडि़त रहती हूं। जो लोग अपने माता-पिता गुरू, पत्नी, पुत्र एवं आश्रित वर्ग का पालन-पोषण नहीं करते हैं। उनका भी भार वहन करने में पृथ्वी सर्वथा असमर्थ होती है।।
जिनके मन में लेश मात्र भी दया नहीं होती एवं सदाचरण का भाव भी जिनके मन में नहीं होते। जो सदा ही गुरूजनों और देवताओं की निंदा करते हैं, जो मित्रद्रोही होते हैं और जो विश्वासघाती होते हैं। ऐसे लोगों के भार से भी पृथ्वी कहती हैं, मैं सदा पीडि़त रहती हूँ। जो लोग सदा ही जीवों की हिंसा करने वाले होते हैं। लोभी, गुरूद्रोही, मूढ मनुष्य देव पूजन को तथा यज्ञों को भंग करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के भार से भी पृथ्वी सदा ही पीडि़त रहती है।।
संसार के जो पापी लोग सदैव गौ-ब्राम्हण, देवता, वैष्णव, श्री हरिकथा और श्रीहरि भक्ति से द्वेश करते हैं, उनके भार से भी पृथ्वी सदा ही आक्रान्त रहती है। इसलिए एक सद्गृहस्थ मनुष्य को चाहिए कि प्रभू चिंतन तथा शास्त्राज्ञानुसार सत्कर्म करते हुए, दुष्टों से तथा दुष्टों के द्वारा खड़े किए जाने वाले उत्पातों और परेशानियों से निपटने के लिए हर वक्त तैयार रहें।।
हमें संतों, ब्राह्मणों, धर्म एवं धर्म पालकों तथा लाचारों की सेवा हेतु तत्पर रहें। हमें शास्त्रानुसार तपस्या और साधना करनी चाहिए दानादि श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करना चाहिए। उसके बाद सूत्र जो बचता है “उसका नाम” इंतजार है। इसी इन्तजार के बाद जो फल प्राप्त होता है, उसे ही मुक्ति अथवा मोक्ष कहते हैं और यही मोक्ष का सहज मार्ग है।।
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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जय श्रीमन्नारायण ।।