सर्वकार्यसिद्धि हेतु श्रीसुदर्शन कवचम्।।

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Kary Sidhi Sudarshana kavach
Kary Sidhi Sudarshana kavach

सर्वकार्यसिद्धि हेतु श्रीसुदर्शन कवचम्।। Kary Sidhi Sudarshana kavach.

सर्वकार्यसिद्धयर्थे श्रीसुदर्शन कवचम्।।

विनियोग:- ॐ अस्य श्री सुदर्शनकवचमालामन्त्रस्य। श्रीलक्ष्मीनृसिंहः परमात्मा देवता। मम सर्वकार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।।

अथ करन्यास:-

ॐ क्ष्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ श्रीं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ सहस्रार अनामिकाभ्यां नमः। ॐ हुं फट् कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ स्वाहा करतल-कर पृष्टाभ्यां नमः एवं हृद्यादि।।

अथ ध्यानम्: –

उपास्महे नृसिंहाख्यं ब्रह्मावेदान्तगोचरम्।
भूयो लालित-संसारच्छेदहेतुं जगद्गुरुम्॥

मानस-पूजाः-

लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि।।
हं आकाशत्मिकं पुष्पं समर्पयामि।।
यं वाय्वात्मकं धूपं आघ्रापयामि।।
रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि।।
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि।।
सं सर्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि।।
ॐ सुदर्शनाय नमः नमस्करोमि।।

ॐ आं ह्रीं क्रों नमो भगवते प्रलयकालमहाज्वालाघोर-वीर-सुदर्शन-नारसिंहाय।
ॐ महाचक्रराजाय महाबलाय सहस्रकोटिसूर्यप्रकाशाय सहस्रशीर्षाय सहस्राक्षाय सहस्रपादाय संकर्षणत्मने सहस्रदिव्यास्त्र-सहस्रहस्ताय सर्वतोमुखज्वलनज्वालामालावृताय विस्फुलिङ्गस्फोटपरिस्फोटित ब्रह्माण्ड भाण्डाय महापराक्रमाय महोग्रविग्रहाय महावीराय महाविष्णुरूपिणे व्यतीतकालान्तकाय महाभद्ररुद्रावताराय मृत्युस्वरूपाय किरीट-हार-केयूर-ग्रैवेय-कटकाङ्गुलीय कटिसूत्र मञ्जीरादिकनकमणिखचितदिव्य-भूषणाय महाभीषणाय महाभीक्षाय व्याहततेजोरूपनिधये रक्त चण्डान्तक मण्डितमदोरुकुण्डादुर्निरीक्षणाय प्रत्यक्षाय ब्रह्माचक्र-विष्णुचक्र-कालचक्र-भूमिचक्र-तेजोरूपाय आश्रितरक्षकाय।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्। इति स्वाहा स्वाहा॥

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्। इति स्वाहा स्वाहा॥

भो भो सुदर्शन नारसिंह मां रक्षय रक्षय।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

मम शत्रून्नाशय नाशय।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल चण्ड चण्ड प्रचण्ड प्रचण्ड स्फुर प्रस्फुर घोर घोर घोरतर घोरतर चट चट प्रचट प्रचट प्रस्फुट दह कहर भग भिन्धि भिन्धि खटट प्रचट फट जहि जहि पय सस प्रलयवा पुरुषाय रं रं नेत्राग्निरूपाय।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

भो भो सुदर्शन नारसिंह मां रक्षय रक्षय।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

एहि एहि आगच्छ आगच्छ भूतग्रह-प्रेतग्रह-पिशाचग्रह दानवग्रह कृतिमग्रह-प्रयोगग्रह-आवेशग्रह-आगतग्रह-अनागतग्रह-ब्रह्माग्रह-रुद्रग्रह-पाताल-निराकारग्रह-आचार-अनाचारग्रह-नानाजातिग्रह-भूचरग्रह-खेचरग्रह-वृक्षचरग्रह-पीक्षिचरग्रह-गिरिचरग्रह-श्मशानचरग्रह-जलचरग्रह-कूपचरग्रह-देगारचलग्रह-शून्याचारचरग्रह-स्वप्नग्रह-दिवामनोग्रह-बालग्रह-मूकग्रह-मूर्खग्रह-बधिरग्रह-स्त्रीग्रह-पुरुषग्रह-यक्षग्रह-राक्षसग्रह-प्रेतग्रह-किन्नरग्रह-साध्यचरग्रह-सिद्धचरग्रह कामिनीग्रह-मोहिनीग्रह-पद्मिनीग्रह-यक्षिणीग्रह-पक्षिणीग्रह-संध्याग्रह-मार्गग्रह-कलिङ्गदेवोग्रह-भैरवग्रह-बेतालग्रह- गन्धर्वग्रह प्रमुखसकलदुष्टग्रह रातान् आकर्षय आकर्षय आवेशय डं डं ठं ठं ह्यय वाचय दह्य भस्मी कुरु उच्चाटय उच्चाटय।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोद्यात्।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोद्यात्।।

ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रूं क्ष्रैं क्ष्रोउं क्ष्रः। भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रैं भ्रौं भ्रः। ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रोउं ह्रः। घ्रां घ्रीं घ्रुं घ्रैं घ्रोउं घ्रः। श्रां श्रीं श्रूं श्रैं श्रोउं श्रः।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

एहि एहि सालवं संहारय शरभं क्रंदया विद्रावय विद्रावय भैरव भीषय भीषय प्रत्यगिरि मर्दय मर्दय चिदम्बरं बन्धय बन्धय विडम्बरं ग्रासय ग्रासय शांभव्ं निवर्तय कालीं दह दह महिषासुरीं छेदय छेदय दुष्टशक्तीः निर्मूलय निर्मूलय रूं रूं हूं हूं मुरु मुरु परमंत्रपरयंत्र-परतंत्र कटुपरं वादुपर जपपर होमपर सहस्रदीपकोटिपूजां भेदय भेदय मारय मारय खण्डय खण्डय परकर्तृकं विषं निर्विषं कुरु कुरु अग्निमुखप्रकाण्ड नानाविधि-कर्तृंमुख वनमुखग्रहान् चूर्णय चूर्णय मारीं विदारय कूष्माण्ड-वैनायक-मारीचगणान् भेदय भेदय मन्त्रांपरस्मांकं विमोचय विमोचय अक्षिशूल-कुक्षिशूल-गुल्मशूल-पार्शव-शूल-सर्वाबान्धान् निवारय निवारय पाण्डुरोगं संहारय संहारय विषमज्वरं त्रासय त्रासय एकाहिकं द्वाहिकं त्रयाहिकं चातुर्थिकं पङ्चाहिकं षष्टज्वरं सप्तमज्वरं अष्टमज्वरं नवमज्वरं प्रेतज्वरं पिशाचज्वरं दानवज्वरं महाकालज्वरं दुर्गाज्वरं ब्रह्माविष्णुज्वरं माहेश्वरज्वरं चतुःषश्टीयोगिनीज्वरं गन्धर्वज्वरं बेतालज्वरं एतान् ज्वारान्नाशय नाशय दोषं मन्थय मन्थय दुरितं हर हर अनन्त-वासुकि-तक्षक-कालिय-पद्म-कुलिक-कर्कोटक-शङ्खपालाद्यष्टनागकुलानां विषं हन हन खं खं घं घं पाशुपतं नाशय नाशय शिखण्डिं खण्डय खण्डय ज्वालामालिनीं निवर्तय सर्वेन्द्रियाणि स्तंभय स्तंभय खण्डय खण्डय प्रमुखदुष्टतंत्रं स्फोटय स्फोटय भ्रामय भ्रामय महानारायणास्त्राय पङ्चाशद्वर्णरूपाय लल लल शरणागतरक्षणाय हुं हूं गं व गं व शं शं अपृतमूर्तये तुभ्यं नमः।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

भो भो सुदर्शन नारसिंह मां रक्षय रक्षय।।

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि।
तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्।।

मम सर्वारिष्टशान्तिं कुरु कुरु सर्वतो रक्ष रक्ष ॐ ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा।।
ॐ क्ष्रौं ह्रीं श्रीं सहस्रार हूं फट् स्वाहा।।

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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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भागवत प्रवक्ता- स्वामी धनञ्जय जी महाराज "श्रीवैष्णव" परम्परा को परम्परागत और निःस्वार्थ भाव से निरन्तर विस्तारित करने में लगे हैं। श्रीवेंकटेश स्वामी मन्दिर, दादरा एवं नगर हवेली (यूनियन टेरेटरी) सिलवासा में स्थायी रूप से रहते हैं। वैष्णव धर्म के विस्तारार्थ "स्वामी धनञ्जय प्रपन्न रामानुज वैष्णव दास" के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत जी की कथा का श्रवण करने हेतु संपर्क कर सकते हैं।।

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