दुर्गा सूक्तम् ।। Vedamantra Manjari -1. वेदमन्त्रमञ्जरि – १. Sansthanam.

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दुर्गा सूक्तम् ।। Vedamantra Manjari -1. वेदमन्त्रमञ्जरि – १. Sansthanam, Silvassa.

ॐ जा॒तवे॑दसे सुनवाम॒ सोम॑ मरातीय॒तो निद॑हाति॒ वेदः॑ । स नः॑ पर्ष॒दति॑
दु॒र्गाणि॒ विश्वा॑ ना॒वेव॒ सिन्धुं॑ दुरि॒ताऽत्य॒ग्निः ॥ ताम॒ग्निव॑र्णां॒
तप॑सा ज्वल॒न्तीं वै॑रोच॒नीं क॑र्मफ॒लेषु॒ जुष्टा᳚म् । दु॒र्गां दे॒वीग्ं
शर॑णम॒हं प्रप॑द्ये सु॒तर॑सि तरसे॒ नमः॑ ॥ अग्ने॒ त्वं पा॑रया॒ नव्यो॑
अ॒स्मान्थ्स्व॒स्तिभि॒रति॑ दु॒र्गाणि॒ विश्वा᳚ । पूश्च॑ पृ॒थ्वी ब॑हु॒ला न॑ उ॒र्वी
भवा॑ तो॒काय॒ तन॑याय॒ शंयोः ॥ विश्वा॑नि नो दु॒र्गहा॑ जातवेदः॒ सिन्धु॒न्न ना॒वा
दु॑रि॒ताऽति॑पर्षि । अग्ने॑ अत्रि॒वन्मन॑सा गृणा॒नो᳚ऽस्माकं॑ बोध्यवि॒ता त॒नूना᳚म्
॥ पृ॒त॒ना॒ जित॒ग्ं॒ सह॑मानमु॒ग्रम॒ग्निग्ं हु॑वेम पर॒माथ्स॒धस्था᳚त् ।
स नः॑ पर्ष॒दति॑ दु॒र्गाणि॒ विश्वा॒ क्षाम॑द्दे॒वो अति॑ दुरि॒ताऽत्य॒ग्निः
॥ प्र॒त्नोषि॑ क॒मीड्यो॑ अध्व॒रेषु॑ स॒नाच्च॒ होता॒ नव्य॑श्च॒ सत्सि॑
। स्वाञ्चा᳚ऽग्ने त॒नुवं॑ पि॒प्रय॑स्वा॒स्मभ्यं॑ च॒ सौभ॑ग॒माय॑जस्व ॥

गोभि॒र्जुष्ट॑म॒युजो॒ निषि॑क्तं॒ तवे᳚न्द्र विष्णो॒रनु॒सञ्च॑रेम । नाक॑स्य
पृ॒ष्ठम॒भि सं॒वसा॑नो॒ वैष्ण॑वीं लो॒क इ॒ह मा॑दयन्ताम् ॥

ॐ का॒त्या॒य॒नाय॑ वि॒द्महे॑ कन्यकु॒मारि॑ धीमहि । तन्नो॑ दुर्गिः प्रचो॒दया᳚त् ॥

ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॑ ॥

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भागवत प्रवक्ता- स्वामी धनञ्जय जी महाराज "श्रीवैष्णव" परम्परा को परम्परागत और निःस्वार्थ भाव से निरन्तर विस्तारित करने में लगे हैं। श्रीवेंकटेश स्वामी मन्दिर, दादरा एवं नगर हवेली (यूनियन टेरेटरी) सिलवासा में स्थायी रूप से रहते हैं। वैष्णव धर्म के विस्तारार्थ "स्वामी धनञ्जय प्रपन्न रामानुज वैष्णव दास" के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत जी की कथा का श्रवण करने हेतु संपर्क कर सकते हैं।।

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