इन्दिरा एकादशी व्रत कथा एवं विधि।।

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Indira Ekadashi Vrat
Indira Ekadashi Vrat

इन्दिरा एकादशी व्रत कथा एवं विधि सहित हिन्दी में।। Indira Ekadashi Vrat Vidhi And Katha in Hindi.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशी आती है इनमें एक एकादशी ऐसी है जो पितृपक्ष में आती है। इस एकादशी का नाम है इंदिरा एकादशी। पितृपक्ष की एकादशी होने के कारण यह एकादशी पितरों की मुक्ति के लिए उत्तम मानी गई। इस एकादशी की महिमा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखकर भगवान हृषिकेश की पूजा करता है वह मृत्यु के बाद यमलोक जाने से बच जाता है।।

इतना ही नहीं अपितु जिनके पूर्वज यानी पितर किसी पाप के कारण यमलोक में यम की यातना सह रहे हैं उन्हें भी यम के कोप से मुक्ति मिल जाती है। ऐसे पितर लोग भी स्वर्ग के अधिकारी बन जाते हैं। पितृपक्ष में इस एकादशी के आने का उद्देश्य भी यही है, कि जिनके पितर यम की यातना सह रहे हैं उन्हें भी मुक्ति मिल जाए।।

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा, कि हे भगवन्! आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है यह भी कृपा करके बतायें। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे, कि हे राजन! इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है।।

यह एकादशी मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली है। हे राजन! इस एकादशी कि कथा भी बहुत ही रोचक है, इसे ध्यानपूर्वक सुनो। क्योंकि इसके सुनने मात्र से ही मनुष्य को वायपेय यज्ञ करने का फल मिल जाता है।।

इन्दिरा एकादशी व्रत कथा हिन्दी में।। Indira Ekadashi Vrat Katha in Hindi.

प्राचीनकाल में सत्ययुग में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा था। वह धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र-पौत्र और धन-धान्य आदि से संपन्न था एवं भगवान विष्णु का परम भक्त था।।

एक दिन जब राजा इन्द्रसेन सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही राजा हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य आदि देकर बिठाया।।

सुखासन पर आनंदपूर्वक बैठकर देवर्षि ने राजा से पूछा, कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है न? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं।।

आप कृपा करके अपने आगमन का कारण बतायें। तब ऋषि कहने लगे, कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो। मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की।।

उसी समय यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म के किसी दोष के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ।।

सो हे पुत्र यदि तुम अश्विन कृष्ण पक्ष कि इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इतना सुनकर राजा कहने लगा, कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझे बतायें।।

नारदजी कहने लगे- अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें।।

प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ संकल्प करें, कि “मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार अथवा फलाहार एकादशी का व्रत करूँगा”।।

हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण में हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए। इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें।।

पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दे दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें। रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ।।

भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।।

नारदजी के कथनानुसार राजा ने अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत किया जिसके उपरान्त आकाश से पुष्पवर्षा हुई। उस पूण्य के प्रभाव से राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर भगवान विष्णु के विष्णुलोक को चला गया।।

राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को चले गये। हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और सब प्रकार के भोगों को भोगकर वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होते हैं।।

इंदिरा एकादशी व्रत विधि indira ekadashi vrat Vidhi.

शास्त्रानुसार इंदिरा एकादशी का व्रत रखने वाले को एकादशी के दिन प्रात: स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए। मौसमी फलों एवं फूलों से भगवान की पूजा करके विष्णु भगवान के नाम का संकीर्तन करना चाहिए।।

परिवार में जिन लोगों की मृत्यु हो चुकी है उनका नाम लेकर भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए, कि उन्हें सद्गति प्रदान करें। एकदशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दक्षिणा देकर प्रसन्न करें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।।

।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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