क्यों नहीं है, भगवान जगन्नाथ के हाथ-पैर?।।

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Bhagwan Jagannath Ke Hath Pair
Bhagwan Jagannath Ke Hath Pair

क्यों नहीं है, भगवान जगन्नाथ के हाथ-पैर?।। Bhagwan Jagannath Ke Hath Pair.

जय श्रीमन्नारायण, Why is there no arms and legs of Lord Jagannath

मित्रों, अपने ही वरदान से हाथ-पांव गंवा बैठे भगवान जगन्नाथ। भगवान जगन्नाथ तीनों लोकों के स्वामी हैं। इनकी भक्ति से लोगों की मनोकामना पूरी होती है। लेकिन खुद इनके हाथ-पांव नहीं हैं। जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ जी के साथ बलदेव और बहन सुभद्रा की भी प्रतिमाएं है। जगन्नाथ जी की तरह इनके भी हाथ-पांव नहीं हैं। तीनों प्रतिमाओं का समान रूप से हाथ-पांव नहीं होना अपने आप में एक अद्भुत घटना का प्रमाण है।।

भगवान जगन्नाथ जी के इस अद्भुत रूप के विषय में यह कथा है, कि मालवा के राजा इंद्रद्युम्न को भगवान विष्णु ने स्वप्न में कहा, कि “समुद्र तट पर जाओ वहां तुम्हें एक लकड़ी का लट्ठा मिलेगा उससे मेरी प्रतिमा बनाकर स्थापित करो। राजा ने ऐसा ही किया और उनको वहां पर लकड़ी का एक लट्ठा मिला। इसी बीच देव शिल्पी विश्वकर्मा एक बुजुर्ग मूर्तिकार के रूप में राजा के सामने आये और एक महीने में मूर्ति बनाने का समय मांगा।।

विश्वकर्मा ने यह शर्त रखी कि जब तक वह खुद आकर राजा को मूर्तियां नहीं सौप देवें तबतक वह एक कमरे में रहेंगे और वहां कोई नहीं आएगा। राजा ने शर्त मान ली, लेकिन एक महीना पूरा होने से कुछ दिनों पहले ही मूर्तिकार के कमरे से आवाजें आनी बंद हो गयी। तब राजा को चिंता होने लगी कि बुजुर्ग मूर्तिकार को कुछ हो तो नहीं गया। इसी आशंका के कारण उसने मूर्तिकार के कमरे का दरवाजा खुलावाकर देखा।।

 

कमरे में तो कोई नहीं था, सिवाय अर्धनिर्मित मूर्तियों के, जिनके हाथ पांव नहीं थे। राजा को अपनी भूल पर पाश्चाताप होने लगा तभी आकाशवाणी हुई, कि यह सब भगवान की इच्छा से हुआ है। इन्हीं मूर्तियों को ले जाकर मंदिर में स्थापित करो। राजा ने ऐसा ही किया और तब से जगन्नाथ जी इसी रूप में पूजे जाने लगे।।

विश्वकर्मा चाहते तो एक मूर्ति पूरी होने के बाद दूसरी मूर्ति का निर्माण कर सकते थे। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और सभी मूर्तियों को अधूरा बनाकर छोड़ दिया। इसके पीछे भी एक कथा है, बताते हैं कि एक बार देवकी रूक्मणी और कृष्ण की अन्य रानियों को राधा और कृष्ण की कथा सुना रही थी। उस समय छिपकर यह कथा कृष्ण, बलराम और सुभद्रा सुन रहे थे। कथा सुनकर वे तीनों इतने विभोर हो गये कि मूर्तिवत वहीं पर खड़े रह गए।।

वहां से गुजर रहे नारद को उनका वह अनोखा रूप दिखा। उन्हें ऐसा लगा जैसे इन तीनों के हाथ-पांव ही न हों। बाद में नारद ने श्री कृष्ण से कहा कि आपका जो रूप अभी मैंने देखा है, मैं चाहता हूं कि वह भक्तों को भी दिखे। कृष्ण ने नारद को वरदान दिया कि वे इस रूप में भी पूजे जाएंगे। इसी कारण जगन्नाथ, बलदेव और सुभद्रा के हाथ-पांव नहीं हैं।।

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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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