भगवान नारायण की स्तुति एवं दस अवतार।। Bhagwan Vishnu Stutiyan.
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।
अर्थ:- ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके अन्त को नहीं जानते, उन (परमपुरुष नारायण) देव के लिए मेरा नमस्कार है।
शान्ताकारम भुजगशयनम पद्मनाभम सुरेशं।
विश्वधारम गगन सदृशं मेघवर्णम शुभान्गम।।
लक्ष्मिकानतम कमलनयनम योगभिरध्यानगम्यम्।
वंदे विष्णुँ भवभयहरम सर्वलोकैकनाथम।।
अर्थ:- जिस भगवान श्री हरि का रूप अति शांत मय है। जो शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं। जिनकी नाभि से कमल का पुष्प निकल रहा है। वह समस्त जगत के आधार जो भगवान श्री हरि गगन के समान हर जगह व्याप्त हैं। जो नील बादलों के रंग के समान रंग वाले हैं तथा जो योगियों के द्वारा ध्यान करने पर भी नहीं मिल पाते। जो समस्त जगत के स्वामी हैं। जो भय का नाश करने वाले तथा धन की देवी लक्ष्मी जी के पति हैं। ऐसे प्रभु श्रीमन्नारायण को मैं शीश झुका कर प्रणाम करता हूं।।
वैदिक हिन्दू मान्यतानुसार भगवान का पृथ्वी पर अवतरण (जन्म लेना) अथवा उतरना ही ‘अवतार’ कहलाता है। हिन्दुओं का विश्वास है, कि ईश्वर यद्यपि सर्वव्यापी, सर्वदा सर्वत्र वर्तमान है। तथापि समय-समय पर आवश्यकतानुसार पृथ्वी पर विशिष्ट रूपों में स्वयं अपनी योगमाया से उत्पन्न होता है।।
भगवान विष्णु के दस अवतार इस प्रकार हैं। हिन्दू धर्म में सर्वोच्च माने गये भगवान विष्णु के दस अवतारों का पुराणों में अत्यंन्त कलात्मक और कथात्मक चित्रण हुआ है। उनके दस अवतार निम्नलिखित हैं-
01.मत्स्य अवतार।।
02.वराह अवतार।।
03.कूर्म अवतार।।
04.नृसिंह अवतार।।
05.वामन अवतार।।
06.परशुराम अवतार।।
07.राम अवतार।।
08.कृष्ण अवतार।।
09.बुद्ध अवतार।।
10.कल्कि अवतार।।
‘कल्कि अवतार’ अभी होना शेष है।।
उन श्रीमन्नारायण से मेरी ये हार्दिक प्रार्थना है, कि मेरे सभी मित्रों का नित्य कल्याण करें।।
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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।
।। नमों नारायण ।।
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।