कलियुगी ज्ञानवीरों से बचने का उपाय संकीर्तन।। Kaliyugi Guanveero Ka Samadhan.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, जिस प्रकार वर्षाऋतु मेँ संध्या समय वृक्षोँ की चोटी पर इधर-उधर अनेक जुगुनू (खद्योत) दिखायी देते हैँ। जो प्रकाशमान दीपकों की भाँति टिमटिमाते अवश्य हैँ। परन्तु आकाश के ज्योतिष्क अर्थात सूर्य, चन्द्रमा एवं तारे नहीँ दिखायी पड़ते। उसी प्रकार कलियुग मेँ नास्तिक या दुष्ट लोग सर्वत्र दिखायी देते हैं। किन्तु वास्तविक आध्यात्मिक उत्थान हेतु वैदिक नियमों का पालन करने वालोँ का अभाव हो जाता है।।
ठीक उसी प्रकार कलियुग की तुलना जीवोँ की मेघाच्छादित ऋतु से की गयी हैं। इस युग मेँ वास्तविक ज्ञान तो सभ्यता की भौतिक उन्नति के द्वारा आच्छादित रहता है। किन्तु शुष्क चिन्तक, नास्तिक एवं तथाकथित धर्मनिर्माता जुगुनुओँ की भाँति प्रगट होते रहते हैँ। जबकि वैदिक नियमोँ या शास्त्रोँ का पालन करने वाले व्यक्ति इस युग के बादलोँ से प्रच्छन्न हो जाते हैँ।।
लोँगो को आकाश के असली ज्योतिष्को सूर्य, चन्द्र एवं नक्षत्रों से प्रकाश ग्रहण करना सीखना चाहिए, न कि जुगुनुओँ से। वस्तुतः जुगुनू रात्रि के अंधकार मेँ प्रकाश नहीँ दे सकता। जिस प्रकार वर्षाऋतु मेँ कभी कभी सूर्य, चन्द्र तथा तारे दिखायी पड़ जाते है। उसी प्रकार कलियुग मेँ भी यत्र तत्र भगवान के नामोँ का संकीर्तन करने वाले सच्चे भक्त भी दिखायी पड़ ही जाते हैँ।।
“हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे।।”
अतः जो वास्तविक प्रकाश की खोज में हैँ। उन्हेँ शुष्क चिन्तकोँ एवं नास्तिको के प्रकाश की बाट न जोहकर नाम संकीर्तन रूपी यज्ञ का आश्रय लेना चाहिए। सतत भगवान के नामों का कीर्तन करते रहना चाहिये। और शबरी की तरह गुरु के वचन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिये, कि एक दिन वो अवश्य आएगा।।
नामसंकीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम्।
प्रणामो दु:खशमनस्तं नमामि हरिं परम्।। (श्रीमद्भागवत महापुराण)
अर्थात:- जिनके नाम का सुमधुर संकीर्तन सर्व पापों को नाश करने वाला है। तथा जिनको प्रणाम करना सकल दु:खों को नाश करने वाला है। उन सर्वोत्तम श्रीहरि के पादपद्मों में मैं प्रणाम करता हूँ। कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा जीव के उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है बृहन्नारदीय पुराण में आता है-
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं।
कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा।।
कलियुग में केवल हरिनाम, हरिनाम और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है। हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है! नहीं है! नहीं है। कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं। कलियुग में तो स्वयं कृष्ण ही हरिनाम के रूप में अवतार लेते हैं। केवल हरिनाम से ही सारे जगत का उद्धार संभव है-
कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार।
नाम हइते सर्व जगत निस्तार।। (चै॰ च॰ १.१७.२२)
पद्मपुराण में कहा गया है-
नाम: चिंतामणि कृष्णश्चैतन्य रस विग्रह:।
पूर्ण शुद्धो नित्यमुक्तोSभिन्नत्वं नाम नामिनो:।।
हरिनाम उस चिंतामणि के समान है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण सकता है। हरिनाम स्वयं रसस्वरूप कृष्ण ही हैं तथा चिन्मयत्त्व (दिव्यता) के आगार हैं। हरिनाम पूर्ण हैं, शुद्ध हैं, नित्यमुक्त हैं। नामी (हरि) तथा हरिनाम में कोई अंतर नहीं है। जो कृष्ण हैं, वही कृष्ण का नाम है। जो कृष्ण का नाम है, वही स्वयं श्रीकृष्ण हैं। कृष्ण के नाम का किसी भी प्रामाणिक स्त्रोत के श्रवण से भी उत्तम होता है। परन्तु शास्त्रों के अनुसार कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र ही बताया गया है।।
कलियुग में इस महामंत्र का संकीर्तन करने मात्र से प्राणी मुक्ति का अधिकारी बन जाता है। कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत (१२.३.५१) का कथन है- यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है। तथापि इसमें एक बहुत बडा सद्गुण यह है, कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुग में यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापरयुग में पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था। कलियुग में वही पुण्यफल श्रीहरि के नाम-संकीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।। (श्रीरामरक्षास्त्रोत्रम्)
भगवान शिव ने कहा, हे पार्वती! मैं निरंतर राम नाम के पवित्र नामों का जप करता हूँ। साथ ही सदैव ही इस दिव्य ध्वनि में आनंद लेता हूँ। रामचन्द्र का यह पवित्र नाम भगवान विष्णु के एक हजार पवित्र नामों (विष्णुसहस्त्रनाम) के तुल्य है।।
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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।
।। नमों नारायण ।।