कल्याण का अंतिम मार्ग धर्म ही है।।

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Kalyan Ka Antim Marg Dharm
Kalyan Ka Antim Marg Dharm

कल्याण का अंतिम मार्ग धर्म ही है।। Kalyan Ka Antim Marg Dharm.

जय श्रीमन्नारायण,

अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने।
अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम्।।

अर्थ:- इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है। केवल धर्म और कीर्ति ये दो हि बातें स्थिर है।।

मित्रों, इस संसार में जिस पुत्र-पुत्री धन-यौवन और सुंदरता के मध्य में हम दिन-रात भागते रहते हैं। तथा फूले नहीं समाते वह धन और पुत्र-पुत्री, सुंदर पत्नी आदि सबकुछ नाशवान है। इसमें कोई संशय नहीं है। और केवल यह बातें शास्त्रों में लिखित ही नहीं है। बल्कि हमारे जीवन में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी है। जिसको हम अपने इस प्रत्यक्ष जीवन में भुगतते भी हैं।।

इससे बड़ा और प्रमाण क्या होगा? इस जीवन में अगर कुछ सत्य है तो वह केवल और केवल धर्म ही है। धर्म ही इस संसार का अंतिम सत्य है। इस संसार से जाते समय आपने, हमने बल्कि सभी ने अपनी आंखों से कई लोगों को मृत्यु को प्राप्त होते देखा होगा। जो तड़पते हुए और दुर्दशा को भोगते हुए इस शरीर का त्याग करते हैं। लेकिन बहुत कम ऐसे पुण्यात्मा व्यक्ति इस संसार में होते हैं जिनके जाने के बाद भी उनकी कीर्ति और उनका धर्म बहुत सालों तक स्थाई रूप से विराजमान रहता है।।

मित्रों, यही इस संसार का अकाट्य सत्य है और इसमें कोई संशय नहीं है। इसलिए हम ऐसे शास्त्रों के अनेकों प्रमाण आपको बता सकते हैं। हमारे शास्त्रों में यह बात स्पष्ट रुप से लिखा है, कि धन के पीछे किसी भी तरह का अन्याय मत करो। अहंकार में आकर किसी का दमन मत करो। धन सबको चाहिए। धन हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। परंतु उस धन की इतनी भी महत्ता नहीं है, कि अपने ईमान को बेच दें।।

धन के लिये अपने शील और स्वभाव का पतन कर दें ऐसा कदापि नहीं होना चाहिये। अगर ऐसा जिसने भी किया है, उसकी दुर्दशा निश्चित है। इसलिए शास्त्रों की यही विनम्र निवेदन है, कि हमें अपने जीवन में बाकी अन्य सभी चीजों के समक्ष धर्म को अधिकाधिक महत्ता देनी चाहिए। इसी में हमारा कल्याण है। इसी में हमारी सफलता है। और इसी के माध्यम से हमारी मुक्ति भी संभव है।।

मुक्ति भी किससे? मुक्ति दुखों से! मुक्ति दरिद्रता से! मुक्ति सांसारिक प्रपंच से! मुक्ति तरह-तरह के परेशानियों से। निश्चित रूप से इस संसार में मुक्ति का अर्थ यही है और हमें अपने जीवन में, इस संसार में इसी जीवन में मुक्ति प्राप्त करनी है तो धर्म का सहारा इसके लिए आवश्यक है। अगर हम धर्म के सहारे अपने जीवन को नहीं चला रहे हैं तो निश्चित रूप से हमें हमारे इसी जीवन में अपने स्वयं की दुर्गति को भी देखना पड़ेगा।।

इतना ही नहीं नाना प्रकार के कष्टों और दुखों का भी सामना करना पड़ेगा। इसमें कोई संशय नहीं है। इसलिए आत्म कल्याण चाहने वाले व्यक्ति को अपने जीवन में धर्म को अधिक महत्व देना चाहिए। धर्म का अभिप्राय क्या है? यह भी समझना आवश्यक है। धर्म का अर्थ किसी मंदिर में बैठकर घंटा बजाना या किसी मस्जिद में किसी मुल्ले और मौलवी के विचारों को आत्मसात करना ही नहीं होता है।।

अपितु जीवन में सभी जीवों का सम्मान! करना सबका कल्याण हो ऐसे कार्य करना! सबके लिए ह्रदय में प्रेम की भावना रखना ही धर्म का मूल अभिप्राय है। वैदिक सनातन धर्म का मूल मंत्र भी यही है। यही धर्म का मूल भी है। गोस्वामी जी कहते हैं, कि दया धर्म का मूल है। जिसके मन में जीव मात्र के लिए दया नहीं है वह कभी धार्मिक नहीं हो सकता। इसलिए हमारे हृदय में प्रेम, दया और करुणा का प्रादुर्भाव हो जाए तब समझना कि आप धार्मिक हैं।।

आप किसी भी धर्म से जुड़े हुए हो सकते हैं। ऐसा नहीं है, कि आप केवल वैदिक सनातन धर्म से ही जुड़े। नहीं आप किसी भी धर्म से जुड़ सकते हैं। लेकिन अगर वहां पर प्रेम, दया, करुणा, सौहार्द्र और अपनत्व की भावना है तो ही वह धर्म है। यह बात भी आप को ध्यान में रखना पड़ेगा। क्योंकि जहां इन सब चीजों का अभाव है वह धर्म कदापि हो ही नहीं सकता।।

इसलिए अगर आप किसी भी धर्म से जुड़े हुए हैं जहाँ ऐसी कोई बात नहीं है तो आप गलत जगह जुड़े हैं। आप उसको छोड़ दीजिए। इसी में आपकी भलाई है। आपका यह मनुष्य तन बहुत जन्मों के अंत के जन्म में मिला है। यह बेकार चला जाएगा। इसलिए यह बेकार न जाए और आप इसी जन्म में अपना कल्याण कर लें। इसके लिए आपको इन सब चीजों से जुड़ना पड़ेगा।।

।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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भागवत प्रवक्ता- स्वामी धनञ्जय जी महाराज "श्रीवैष्णव" परम्परा को परम्परागत और निःस्वार्थ भाव से निरन्तर विस्तारित करने में लगे हैं। श्रीवेंकटेश स्वामी मन्दिर, दादरा एवं नगर हवेली (यूनियन टेरेटरी) सिलवासा में स्थायी रूप से रहते हैं। वैष्णव धर्म के विस्तारार्थ "स्वामी धनञ्जय प्रपन्न रामानुज वैष्णव दास" के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत जी की कथा का श्रवण करने हेतु संपर्क कर सकते हैं।।

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