महाभारत का सबसे ज्यादा भावुक प्रसंग।।

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Mahabharat Ka Bhavuk Prasang
Mahabharat Ka Bhavuk Prasang

महाभारत का सबसे ज्यादा भावुक प्रसंग।। Mahabharat Ka Bhavuk Prasang.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, महाभारत में ऐसी कई बार कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं जो व्यक्ति को भावुक कर देती हैं। जैसे बहुत ही कम उम्र में अभिमन्यु का छल से मारा जाना। द्रोणाचार्य और कर्ण का भी छल से वध कर देना। परन्तु यह सब तो युद्ध की घटनाएं हैं। युद्ध से अलग भी ऐसी कई कहानियां हैं जो हमें द्रवित कर देती हैं। आज मैं आपलोगों को उसी में से कुछ ऐसी कहानियां सुनाता हूँ।।

पहली अम्बा की कहानी है। हस्तिनापुर में विचित्रवीर्य के युवा होने पर पितामह भीष्म ने बलपूर्वक अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका नाम की काशीराज की 3 पुत्रियों का हरण कर लिया। वे उसका विवाह विचित्रवीर्य से करना चाहते थे। क्योंकि पितामह भीष्म चाहते थे, कि किसी भी तरह अपने पिता शांतनु का कुल बढ़े। लेकिन बाद में बड़ी राजकुमारी अम्बा को छोड़ दिया गया। क्योंकि वह शाल्वराज को चाहती थी। अन्य दोनों (अम्बालिका और अम्बिका) का विवाह विचित्रवीर्य के साथ कर दिया गया।।

अम्बा जब शाल्वराज के पास गई तो शाल्वराज से उसे ठुकरा दिया। तब वह अपने पिता के यहां गई तो पिता ने भी उन्हें शरण नहीं दी। तब थकहारकर अंबा ने भीष्म के सामने विवाह का निवेदन किया। लेकिन उन्होंने तो आजीवन ब्रह्मचारी रहने व्रत लिया हुआ था। अंतत: अंबा ने गुरु परशुराम से न्याय की गुहार लगाई। गुरु परशुराम ने भीष्म से युद्ध किया लेकिन गुरु परशुराम को निराशा ही हाथ लगी। तब निराश अंबा ने शिव की आराधना की और यह वरदान मांगा कि इच्छामृत्यु का वर पाए भीष्म की मृत्यु का कारण वह बने। शिव ने कहा कि यह अगले जन्म में ही संभव हो सकेगा। अंबा तब मृत्यु को वरण कर लेती है। यह अंबा ही शिखंडी के रूप में जन्म लेती है।

दूसरी भानुमती जो काम्बोज के राजा चन्द्रवर्मा की पुत्री थी। भानुपति बहुत ही सुंदर, आकर्षक, बुद्धिमान और ताकतवर थी। उसकी सुंदरता और शक्ति के किस्से बहुत ही प्रसिद्ध थे। यही कारण था कि भानुमती के स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध, रुक्मी, वक्र, कर्ण आदि राजाओं के साथ दुर्योधन भी गया हुआ था। कहते हैं कि जब भानुमती हाथ में माला लेकर अपनी दासियों और अंगरक्षकों के साथ दरबार में आई और एक-एक करके सभी राजाओं के पास से गुजरी। उस समय वह दुर्योधन के सामने से भी गुजरी।।

परन्तु दुर्योधन चाहता था, कि भानुमती माला उसे ही पहना दें। परन्तु वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। दुर्योधन के सामने से भानुमती आगे आगे बढ़ गई। दुर्योधन ने क्रोधित होकर तुरंत ही भानुमती के हाथ से माला झपटकर खुद ही अपने गले में डाल ली। इस दृष्य को देखकर सभी राजाओं ने तलवारें निकाल लीं। ऐेसी स्थिति में दुर्योधन ने भानुमती का हाथ पकड़ा और वह उसे महल के बाहर ले जाते हुए सभी योद्धाओं से बोला, कर्ण को परास्त करके मेरे पास आना। अर्थात उसने सब योद्धाओं से कर्ण से युद्ध की चुनौती दी जिसमें कर्ण ने सभी को परास्त कर दिया। लेकिन जरासंध से कर्ण का युद्ध देर तक चला।।

इस तरह दुर्योधन ने भानुमती के साथ जबरन विवाह कर लिया। भानुमती को हस्तिनापुर ले आने के बाद दुर्योधन ने उसे ये कहकर सही ठहराया कि भीष्म पितामह भी तो अपने सौतेले भाइयों के लिए अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण करके ले आए थे। भानुमती अनिच्छा से ही दुर्योधन के साथ रहने लगी। दोनों के दो संतान हुई- एक पुत्र लक्ष्मण था जिसे अभिमन्यु ने युद्ध में मारा दिया था। एक पुत्री लक्ष्मणा थी जिसे श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब उठा ले गया। भानुमती के पास रोने के अलावा कुछ भी नहीं था।।

दूसरी ओर कहते हैं, कि अभिमन्यु की पत्नी वत्सला बलराम की बेटी थी। बलराम चाहते थे, कि वत्सला की शादी दुर्योधन के बेटे लक्ष्मण से हो। वत्सला और अभिमन्यु एक-दूसरे से प्यार करते थे। अभिमन्यु ने वत्सला को पाने के लिए घटोत्कच की मदद ली। घटोत्कच ने लक्ष्मण को इतना डराया कि उसने कसम खा ली कि वह पूरी जिंदगी शादी नहीं करेगा। तीसरी ओर भानुमति का पति दुर्योधन भी अंत में जब मारा गया तो भानुमति के पास कुछ नहीं रहा।।

अब भानुमति के दुख को ऐसे समझें। भानुमती ने दुर्योधन को पति चुना नहीं दुर्योधन ने जबरदस्ती की शादी। अपने दम पर नहीं कर्ण के दम पर किया भानुमती का हरण, दूसरा भानुमती की बेटी लक्ष्मणा को कृष्ण पुत्र साम्ब भगा ले गया था, तीसरा पुत्र लक्ष्मण की इच्‍छापूरी नहीं हुई और वह अभिमन्यु के हाथों युद्ध में वीरगती को प्राप्त हुआ। चौथा कि जब उसका पति दुर्योधन मारा गया तब वह उसे देख भी नहीं पाई।।

भानुमती बेहद ही सुंदर, आकर्षक, तेज बुद्धि और शरीर से काफी ताकतवर थी। गंधारी ने सती पर्व में बताया है, कि भानुमती दुर्योधन से खेल-खेल में ही कुश्ती करती थी जिसमें दुर्योधन उससे कई बार हार भी जाता था। भले ही दुर्योधन भानुमति को हरण करके लाया था लेकिन भानुमति को दुर्योधन से प्यार हो गया था। भानुमति को दुर्योधन और पुत्र लक्ष्मण की मौत का गहरा धक्का लगा था। उससे सांत्वना देने वाला भी कोई नहीं बचा था। अंत में वह बिचारी पांडवों के आश्रय पर जिंदा रही और बड़ी मुश्किल से जीवन गुजारा।।

।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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भागवत प्रवक्ता- स्वामी धनञ्जय जी महाराज "श्रीवैष्णव" परम्परा को परम्परागत और निःस्वार्थ भाव से निरन्तर विस्तारित करने में लगे हैं। श्रीवेंकटेश स्वामी मन्दिर, दादरा एवं नगर हवेली (यूनियन टेरेटरी) सिलवासा में स्थायी रूप से रहते हैं। वैष्णव धर्म के विस्तारार्थ "स्वामी धनञ्जय प्रपन्न रामानुज वैष्णव दास" के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत जी की कथा का श्रवण करने हेतु संपर्क कर सकते हैं।।

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