श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा एवं विधि।। Shravan Putrada Ekadashi Vrat Katha And Vidhi.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, वैदिक सनातन के पञ्चांग के अनुसार पड़ने वाली एकादशी तिथि चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो या शुक्ल पक्ष की। हिंदू धर्म में उसका महत्व बहुत अधिक होता है। प्रत्येक माह की कृष्ण और शुक्ल एकादशियां अपने आप में खास होती हैं। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और उपवास भी रखा जाता है।।
श्रावण और पौष मास की एकादशियों का महत्व एक समान माना जाता है। इन एकादशियों को संतान प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। श्रावण मास की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। आइये जानते हैं श्रावण शुक्ल एकादशी की व्रत कथा एवं पूजा विधि के बारे में।।
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा।। Shravan Putrada Ekadashi Vrat Katha.
पौराणिक ग्रंथों में सभी एकादशियों के माहात्म्य की कथा मिलती है। श्रावण पुत्रदा की व्रत कथा कुछ इस प्रकार है। एक बार की बात है! युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा! हे मधुसुदन! कृपा करके श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत के विषय में विस्तार पूर्वक बतायें। इस दिन किस देव का पूजन एवं व्रत किया जाता है तथा इसकी विधि क्या है?।।
जिज्ञासावश उन्होंने श्रावण शुक्ल एकादशी के विषय में बताने का निवेदन किया। तब भगवान श्री कृष्ण ने श्रावण शुक्ल एकादशी की कथा कहते हैं। हे राजन्! श्रावण शुक्ल एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। अब मैं जो कथा तुम्हें सुनाने जा रहा हूं इसे सुनने के पश्चात तुम इसके माहात्म्य को स्वयं ही समझ सकोगे। बात बहुत समय पहले की है। लगभग द्वापर के आरंभ में माहिष्मति नाम की एक नगरी थी। जिसमें बहुत ही नियम धर्म का पालन करनेवाला महीजित नाम का राजा राज्य करता था।।
राजा अपनी प्रजा को पुत्र की तरह प्रेम से रखता था। उनकी सुख-सुविधाओं का, न्याय का, ब्राह्मणों के सम्मान का तथा दान-पुण्य का उसे भली प्रकार से ज्ञान रहता था। सब कुछ अच्छे से चल रहा था लेकिन विवाह के कई वर्ष बीत जाने के पश्चात भी उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी। यह बात राजा महीजित को अक्सर परेशान करती थी। जैसे-जैसे उम्र बीत रही थी राजा की चिंता और बड़ा रूप लेने लगी थी।।
एक दिन उसने दरबार में ज्ञानवान ब्राह्मणों, पुजारी-पुरोहितों को बुलवाया। उसके समस्त प्रजाजन भी उपस्थित थे। सभी के समक्ष राजा ने विनम्रता से कहा हे ज्ञानियों, प्रजाजनों, ब्राह्मण देवताओ मैंने जब से होश संभाला है तब से लेकर आज जबकि मुझे राज्य की बागडोर संभाले भी एक अरसा हो गया है। मैनें अधर्म का कोई कार्य नहीं किया है। धर्म कर्म दान पुण्य न्याय-अन्याय का पूरा विचार मुझे रहा है।।
यह भी सही है, कि मेरी प्रजा मुझे पुत्र के समान ही प्रिय है। लेकिन विधि ने मुझे संतानहीन कौन से पाप की वजह से रखा है मैं समझ नहीं पाया हूं। प्रजा भी राजा के यहां संतान न होने से दुखी तो पहले से ही थी। लेकिन राजा के इस प्रकार अपनी व्यथा प्रकट करने से तो वह और भी द्रवित हो गई। सभी की आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगी। राजा ने विद्वान ब्राह्मणों पुरोहितों से अनुरोध किया कि वे कोई उपाय बतायें कि किस प्रकार उन्हें संतान का सुख मिल सकता है।।
राजा इतने धर्मात्मा थे कि उनमें कोई पाप नज़र ही नहीं आ रहा था। तो वे उन्हें क्या बतायें समझ नहीं आ रहा था। तभी किसी ने कहा कि इसके लिये हमें मुनि लोमेश की सहायता लेनी चाहिये। वहीं इस समय सर्वश्रेष्ठ मुनि हैं। सनातन धर्म की गूढ़ गुत्थियों को सुलझाने में वे ही सबके सहायक हैं। उनके तपोबल से ही एक कल्प बीतने पर उनका मात्र एक रोम मात्र गिरता है। फिर क्या था सभी जाकर मुनि लोमेश को प्रणाम किया।।
अब ऋषि तो अंतर्यामी होते हैं फिर भी पूछ लिया कि कहिये क्या कष्ट है? मैं आपकी अवश्य सहायता करूंगा, मेरा उद्देश्य ही परोपकार है। सभी विद्वानों प्रजाजनों ने अपनी व्यथा प्रकट की कि उनके धर्मात्मा राजा पर यह कैसा संकट है? तथा इस समस्या का समाधान क्या हैं? मुनि ने क्षण भर के लिये अपने नेत्र बंद किये और अगला पिछला सबकुछ जान लिया।।
तब उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में राजा एक बहुत ही गरीब व्यापारी था। छल और पापकर्मों से उसने संपत्ति एकत्रित की। लेकिन ज्येष्ठ माह में द्वादशी को मध्याह्न के समय जबकि उस समय वह दो दिन से भूखा प्यासा था। उसे एक जलाशय दिखाई दिया, वहीं पर एक गाय भी पानी पी रही थी। तब उसे गौ को वहां से हटाकर स्वयं की प्यास बुझाई। इसी पापकर्म के फलस्वरूप इस जन्म में संतानहीनता का कष्ट भोगना पड़ रहा है।।
अंजाने ही एकादशी उपवास संपन्न करने से वह राजा बना और प्यासी गाय को जल पीने से रोकने के कारण उसे संतानहीन होना पड़ा। यह जानकर सब बहुत दुखी हुए और कहा हे मुनिवर हर पाप के प्रायश्चित का उपाय भी आप जैसे मुनि को मालूम होगा? आप ही हमें कोई उपाय बतायें जिससे हमारे राजा का संकट दूर हो। तब उन्होंने कहा कि एक रास्ता है। यदि सभी प्रजाजन मिलकर श्रावण शुक्ल एकादशी जो कि पुत्रदा एकादशी भी होती है को उपवास रखकर रात्रि में जागरण करें।।
साथ ही अगले दिन पारण कर उस फल का समस्त पुण्य राजा को दें दें तो बात बन सकती है। मुनि का आशीर्वाद लेकर सभी वापस लौट आये। कुछ समय पश्चात ही श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत आया तब सभी ने विधिनुसार उपवास रखा और मुनि के बताये अनुसार ही व्रत का पुण्य राजा को दे दिया। जल्द ही रानी गर्भवती हो गई और उन्हें एक तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।।
श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत के माहात्म्य को सुनने एवं सुनाने मात्र से ही समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। इहलोक में भौतिक सुख-सुविधाएं तो मिलती ही हैं परलोक भी सुधर जाता है।।
श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत विधि।। Shravan Putrada Ekadashi Vrat Vidhi.
मित्रों, एकादशी व्रत की तैयारी दशमी तिथि से ही की जाती है। दशमी के दिन व्रती को सात्विक आहार लेना चाहिये। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से स्वच्छ होकर व्रत का संकल्प करना चाहिये। आज भगवान विष्णु के बाल गोपाल रूप की पूजा करनी चाहिये।।
पूजन के उपरान्त माहात्म्य कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिये। रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये। तत्पश्चात द्वादशी के दिन के सूर्योदय के साथ पूजा संपन्न करनी चाहिये। इसके पश्चात व्रत का पारण किसी भूखे जरूरतमंद या फिर सुपात्र ब्राह्मण को भोजन करवाकर, दान-दक्षिणा से उन्हें संतुष्ट करके करना चाहिये।।
।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।
नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।
।। नमों नारायण ।।
Wow, this paragraph is good, my younger sister is analyzing such things, so I am going to tell her. Noni Agustin Sharma