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About Shri Valmikiya Ramayana. श्रीरामायण (एक परिचय – श्री महर्षि वाल्मीकि ) ।। Sansthanam.

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अथ श्रीमदवाल्मीकिरामायण  (एक परिचय – श्री महर्षि वाल्मीकि )।। Sansthanam.

श्री राम के वैयक्तिक सद्गुणों का उच्चतम आदर्श समाज के सम्मुख प्रस्तुत करना वाल्मीकि रामायण का प्रमुख उद्देश्य है । एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, भ्राता एवं आदर्श राजा- एक वचन, एक पत्नी, एक बाण जैसे व्रतों का निष्ठापूर्वक पालन करने वाले श्री राम का चरित्र उकेरकर अहिंसा, दया, अध्ययन, सुस्वभाव, इंद्रिय दमन, मनोनिग्रह जैसे षट्‍गुणों से युक्त आदर्श चरित्र की स्थापना श्रीरामकथा का मुख्य प्रयोजन है । रामायण में वर्णित राम-लक्ष्मण-सीता ईश्वर स्वरूप हो सारे भरतखंड में पूजा-आराधना के केंद्र हैं । राम परिवार के वैचारिक, भाषिक एवं क्रियात्मक पराक्रम का वर्णन करना ही वाल्मीकि रामायण का प्रधान हेतु रहा है ।।

ब्रह्माजी के मानस पुत्र नारदजी से एक बार वाल्मीकि ऋषि ने प्रश्न पूछा था- ‘संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला दृढ़प्रतिज्ञ कौन है ? ऐसा कौन सा महापुरुष है जो आचार-विचार एवं पराक्रम में आदर्श माना जा सकता है ।’ इस पर नारदजी का उत्तर था- ‘राम नाम से विख्यात, वे ही मन को वश में रखने वाले महा बलवान, कांतिमान, धैर्यवान और जितेंद्रीय हैं ।’ उसी समय नारद जी ने अत्यंत भाव-विह्वल होकर संपूर्ण रामचरित्र वाल्मीकि के समक्ष प्रस्तुत किया ।।

रामचरित्र के महासागर में डूबे, राम जल से आकंठ भीगे, करुणा-प्रेम, भक्ति जैसे सकारात्मक रसों से आप्लावित वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर स्नान की इच्छा से आए । उनके हृदय में रामभक्ति का समुद्र लहरा रहा था । सारी सृष्टि ही मानो राममय हो गई थी । राम के दैविक गुण, मानवीय वृत्तियाँ, दया, उदारता, अहिंसा, अक्रोध, परदुःख, कातरता अभी भी उनके मन-मस्तिष्क पर छाई हुई थी कि शांत रस का सामना वीभत्स एवं हिंसा वृत्ति से हुआ । शीतल भूमि पर एकाएक दग्धता का अनुभव हुआ, जब सामने ही एक बहेलिए ने हिंसक भावों को प्रकट करते हुए निरपराध, मूक, मैथुनरत क्रौंच पक्षी को स्वार्थवश बाण से आहत कर दिया । अभी-अभी तो नारद जी से राम बाण, राम के शर संधान की कथा सुनी थी कि राम ने शौर्य, पराक्रम, दयालुता, उदारता आदि भावों का संरक्षण करते हुए दुष्टों के नाश एवं सज्जनों के परित्राण हेतु शस्त्र उठाए थे । और कहाँ यह चरित्र कि अपने स्वार्थ हेतु मूक पक्षी को उस समय मार डाला जब कि वह सृष्टि की सृजन प्रक्रिया में मग्न था । दो धनुषधारी परंतु दोनों ही विपरीत दिशा में ! राम के लोकहित में उठाए गए शस्त्रों के विपरीत यह शर संधान वीभत्स एवं शोक पैदा करने वाला था, जिसने वाल्मीकि को अंदर तक द्रवित कर दिया । क्रौंच पक्षी की पीड़ा से एकाकार हुए वाल्मीकि के मुँह से ‘मा निषाद…’ वाला श्लोक बह गया। सारी घनीभूत पीड़ा श्लोक में उतर आई ।।

क्रौंच वध से आहत वाल्मीकि ऋषि ने निषाद को शाप देने के बाद विरोधी भावनाओं के समुद्र में डूबते-उतराते रहे । वे कर्तव्याकर्तव्य-करणीयाकरणीय के बीच द्वंद्वात्मक स्थिति में थे कि स्वर्ग से ब्रह्मा जी का आरोहण हुआ । वाल्मीकि जी सृष्टि के निर्माता एवं जगत के पितामह को स्वयं के द्वारा निषाद को शाप देने की कथा सुनाकर पश्चाताप करने लगे । इसी बीच अपने मुँह से निकले आदि श्लोक का भी वर्णन उन्होंने ब्रह्मा के समक्ष किया । वाल्मीकि के पश्चातापयुक्त वचन एवं आदि श्लोक की चर्चा सुनकर ब्रह्मा ने उन्हें धीरज बँधाकर दुःखी न होने को कहा । साथ ही आदेश दिया कि वे रामचरित्र का वैसा ही वर्णन करें जैसा उन्होंने ब्रह्मापुत्र नारद के मुँह से सुना था । ब्रह्मा ने इस कार्य की सफलता एवं सुसंचालन के लिए वाल्मीकि को वर दिया कि रामकथा का वर्णन करते हुए तुम्हें गुप्त एवं अज्ञात चरित्र भी ज्ञात और उजागर हो जाएँगे तथा तुम अपने योग धर्म से चरित्रों का अनुसंधान भी कर पाओगे । साथ ही जब तक सृष्टि में पर्वत-नदियाँ रहेंगे, तब तक लोग रामकथा का गान करते रहेंगे ।।

अपने शोक को श्लोक में प्रकट करने वाले वाल्मीकि आदि कवि कहलाए । वे कवियों के प्रथम सृष्टि पुरुष हुए, तभी तो ‘विश्व’ जैसे संस्कृत भाषा के शब्दकोश में कवि का अर्थ ही ‘वाल्मीकि’ दिया गया है । आदि कवि वाल्मीकि की रचना ‘रामायण’ संस्कृत भाषा का पहला ‘आर्ष महाकाव्य’ माना जाता है । इतिहास पर आधारित एवं सदाचारसंपन्न आदर्शों का प्रतिपादन करने वाले काव्य को ‘आर्ष महाकाव्य‘ कहा जाता है । वह सद्गुणों एवं सदाचारों का पोषक, धीरोदात्त, गहन आशय से परिपूर्ण, श्रवणीय छंदों से युक्त होता है । यह सर्वविदित है कि संस्कृत तमाम भाषाओं की जननी है । अतः यह महाकाव्य तमाम भारतीय भाषाओं का पहला महाकाव्य है ।।

वाल्मीकि के पूर्व रामकथा मौखिक रूप से विद्यमान थी । वाल्मीकि रामायण भी दीर्घकाल तक मौखिक रूप में रही । इस मौखिक काव्य रचना को रामपुत्र लव-कुश ने कंठस्थ किया एवं वर्षों तक उसे सुनाते रहे । राम की सभा में लव-कुश द्वारा कथा सुनाने के प्रसंग पर राम अपने भाइयों से कहते हैं- ‘ये जिस चरित्र का, काव्य का गान कर रहे हैं वह शब्दालंकार, उत्तम गुण एवं सुंदर रीति आदि से युक्त होने के कारण अत्यंत प्रभावशाली एवं अभ्युदयकारी है, ऐसा वृद्ध पुरुषों का कथन है । अतः तुम सब लोग इसे ध्यान देकर सुनो ।।’

अंत में इस मौखिक काव्य को लिपिबद्ध करने का काम भी वाल्मीकि द्वारा ही किया गया । राम के वन से अयोध्या लौटने के बाद रामायण की रचना हुई, जिसमें 24,000 श्लोक, 500 सर्ग एवं 7 काण्ड हैं । इन 7 काण्डों पर विद्वान एकमत नहीं हैं । कुछ विद्वानों का मानना है कि 2 से 6 तक के काण्ड अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा, सुन्दर एवं युद्ध काण्ड वाल्मीकि रचित हैं । प्रथम एवं सातवां (बाल काण्ड एवं उत्तर काण्ड) वाल्मीकि रचित नहीं हैं । इस रामकथा को ‘पौलत्स्य वध’ तथा दशानन वध भी कहा गया है । सारतः कहा जा सकता है कि रामायण रूपी भगीरथी को पृथ्वी पर उतारने का काम महर्षि वाल्मीकि जी ने ही किया ।।

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