भृगु संहितोक्तम्-श्रीसुदर्शन कवचम्।।

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Shri Sudarshana kavacham
Sudarshana kavacham

भृगु संहितोक्तम्-श्रीसुदर्शन कवचम्।। Shri Sudarshana kavacham.

अथ श्रीसुदर्शन कवचम्।।

प्रसीद भगवन् ब्रह्मन् सर्वमन्त्रज्ञ नारद।
सौदर्शनं तु कवचं पवित्रं ब्रूहि तत्वतः॥१॥

नारद उवाच:-

श्रुणुश्वेह द्विजश्रेष्ठ पवित्रं परमाद्भुतम्।
सौदर्शनं तु कवचं दृष्टाऽदृष्टार्थ साधकम्॥२॥

कवचस्यास्य ऋषिर्ब्रह्मा छन्दोनुष्टुप् तथा स्मृतम्।
सुदर्शन महाविष्णुर्देवता सम्प्रचक्षते॥३॥

ह्रां बीजं शक्तिरद्रोक्ता ह्रीं क्रों कीलकमिष्यते।
शिरः सुदर्शनः पातु ललाटं चक्रनायकः॥४॥

घ्राणं पातु महादैत्य रिपुरव्यात् दृशौ मम।
सहस्रारः श्रुतिं पातु कपोलं देववल्लभः॥५॥

विश्वात्मा पातु मे वक्त्रं जिह्वां विद्यामयो हरिः।
कण्ठं पातु महाज्वालः स्कंधौ दिव्यायुधेश्वरः॥६॥

भुजौ मे पातु विजयी करौ कैटभनाशनः।
षट्कोण संस्थितः पातु हृदयं धाम मामकम्॥७॥

मध्यम् पातु महावीर्यः त्रिनेत्रो नाभिमण्डलम्।
सर्वायुधमयः पातु कटिं श्रोणिम् महाध्युतिः॥८॥

सोमसूर्याग्नि नयनः ऊरु पातु च मामकौ।
गुह्यं पातु महामायः जानुनी तु जगत्पतिः॥९॥

जङ्घे पातु ममाजस्रं अहिर्बुध्न्यः सुपूजितः।
गुल्फौ पातु विशुद्धात्मा पादौ पुरपुरञ्जयः॥१०॥

सकलायुध सम्पूर्णः निखिलाङ्गं सुदर्शनः।
य इदं कवचं दिव्यम् परमानंद दायिनम्॥११॥

सौदर्शनमिदं यो वै सदा शुद्धः पठेन् नरः।
तस्यार्थ सिद्धिर्विपुला करस्था भवति ध्रुवम्॥१२॥

कूष्माण्ड चण्ड भूताध्याः ये च दुष्टाः ग्रहाः स्मृताः।
लायन्तेऽनिशम् पीताः वर्मणोस्य प्रभावतः॥१३॥

कुष्टापस्मार गुल्माद्याः व्यादयः कर्महेतुकाः।
नश्यन्त्येतन् मन्त्रितांबु पानात् सप्त दिनावधि॥१४॥

अनेन मन्त्रिताम्मृत्स्नां तुलसीमूलः संस्थिताम्।
ललाटे तिलकं कृत्वा मोहयेत् त्रिजगन् नरः॥१५॥

।। इति श्रीभृगुसंहितोक्त श्रीसुदर्शन कवचम् सम्पूर्णम् ।।

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जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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भागवत प्रवक्ता- स्वामी धनञ्जय जी महाराज "श्रीवैष्णव" परम्परा को परम्परागत और निःस्वार्थ भाव से निरन्तर विस्तारित करने में लगे हैं। श्रीवेंकटेश स्वामी मन्दिर, दादरा एवं नगर हवेली (यूनियन टेरेटरी) सिलवासा में स्थायी रूप से रहते हैं। वैष्णव धर्म के विस्तारार्थ "स्वामी धनञ्जय प्रपन्न रामानुज वैष्णव दास" के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत जी की कथा का श्रवण करने हेतु संपर्क कर सकते हैं।।

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