निर्जला एकादशी व्रत का कथा एवं विधि।।

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Nirjala Ekadashi Vrat
Nirjala Ekadashi Vrat

निर्जला एकादशी व्रत का कथा एवं विधि।। Nirjala Ekadashi Vrat Katha And Vidhi.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, आज हम बात करेंगे संसार के सबसे प्रभावशाली एवं सबसे ज्यादा पूण्य देनेवाले व्रत के विषय में। जी हाँ! यह व्रत निर्जला एकादशी व्रत है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आता है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। सनातन मान्यता के अनुसार कहा गया है, कि जो व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत को करता है उसे समस्त एकादशी व्रत में मिलने वाला पुण्य प्राप्त होता है।।

इस निर्जला एकादशी व्रत को निर्जल एवं निराहार रहकर करनेवाला व्यक्ति जीवन के सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है। व्रत के साथ-साथ इस दिन धन-धान्यादि दान भी करना चाहिये। दान करने वाले व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन जल से भरा कलश दान करना बेहद ही शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति को सुखी जीवन और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।।

एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण ना करने के विधान के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। वर्ष भर में 24 एकादशिओं में से जेष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी सर्वोत्तम मानी गई है। इस एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर के पूरे एकादशी के फल की प्राप्ति सहज में हो जाती है। एक तो जेष्ठ मास के दिन बड़े होते हैं दूसरे गर्मी की अधिकता के कारण बार-बार प्यास लगती है।।

ऐसे में इस दिन पानी नहीं पिया जाता। इसलिए यह व्रत अत्यधिक श्रम शाध्य होने के साथ-साथ कष्ट एवं असह्य पीड़ादायक भी होता है। वैसे तो जलपान के निषिद्ध होने पर भी इस व्रत में फलाहार के पश्चात दूध पीने का विधान है। परन्तु ज्यादातर लोग इसे निराहार रहकर ही करते हैं। इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए कि वह जल के कलश को भरे उस पर सफेद वस्त्र का ढक देवे।।

उसके ऊपर ढक्कन रखें और ढ़क्कन पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मणों को दान दें। सुहागिन स्त्रियाँ नथ पहन कर ओढ़नी ओढ़ कर मेहंदी लगाकर पूर्वोक्त विधि अनुसार शीतल जल से भरा घट दान करें। उसके उपरान्त अपनी सास अथवा अपने से सभी बड़ों का चरण स्पर्श करें। इस एकादशी का व्रत करके यथा संभव अन वस्त्र छतरी जूता पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए।।

इस दिन निराहार एवं निर्जल व्रत करते हुए शेष शय्या पर विराजमान भगवान विष्णु के स्वरुप की आराधना का विशेष महत्व माना गया है। इस विधि अनुसार जल से भरे कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशिओं का फल लाभ प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार के दान जो हम करते हैं, उसमें “सर्वभुत हिते रताः” की भावना चरितार्थ होती है।।

निर्जला एकादशी व्रत की कथा।। Nirjala Ekadashi Vrat Katha.

एक दिन महर्षि व्यास पांडवों को एकादशी के व्रत का विधान तथा फल बता रहे थे। तभी शेष पाण्डवों ने भीमसेन के भोजन करने के दोषों की चर्चा करने लगे। भीमसेन ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा, पितामह इस एकादशी व्रत में अन्न जल ग्रहण ना करें, आपके इस आदेश का पालन मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं तो बिना खाए रह ही नहीं सकता।।

अतः हे ऋषिवर! मुझे 24 एकादशीयों पर निराहार रहने की कष्ट साधना से बचने के लिए कोई एक ऐसा व्रत बतलाईए। जिसे करने से मुझे विशेष असुविधा ना हो एकादशी व्रत का सम्पूर्ण फल भी मिल जाए। जो फल अन्य लोगों को 24 एकादशी व्रत करने पर मिलता है। वही फल मुझे प्राप्त हो जाए। महर्षि व्यास जानते थे कि भीमसेन के उदर में अग्नि बहुत तेज है। इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करते हैं।।

इतने के बाद भी इनकी भूख शांत नहीं होती। अतः भीमसेन के इस भाव के समझकर महर्षि व्यास ने कहा, कि भीमसेन तुम जेष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को मात्र एक ही एकादशी किया करो। इस व्रत में स्नान एवं आचमन के समय पानी पीने का दोष नहीं होता। इस दिन अन्न खाकर जितने पानी में एक मासा वजन की स्वर्ण मुद्रा डूब जाए उतना ही जल ग्रहण करो।।

इस प्रकार यह व्रत करने से अन्य 23 एकादशी को अन्न खाने का दोष नहीं लगता है। साथ ही सम्पूर्ण एकादशी व्रत के करने का पुण्य लाभ भी प्राप्त हो जाता है। क्योंकि भीमसेन मात्र कोई एक व्रत करने के लिए महर्षि व्यास के सामने प्रतिज्ञा कर चुके थे। इसलिए इस व्रत को करने लगे और इसी कारण इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इसलिए वर्ष भर में एक ही भीमसेनी एकादशी करने से पूरे वर्ष भर का एकादशी व्रत का फल मिल जाता है।।

निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है, कि पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ को गए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ।।

सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित साल की 25 एकादशी व्रत का फल मिलता है। जहाँ साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी होता है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। अर्थात निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है एवं शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है।।

निर्जला एकादशी व्रत का विधान।। Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi.

कोई भी एकादशी का व्रत दशमी से ही शुरू हो जाता है। दशमी तिथि को एक वक्त ही भोजन करना चाहिये। अगले दिन दिन भर इन बातों का ध्यान रखें। पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अलावा अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीएं। दिनभर कम बोलें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें। इस बात का ध्यान रखें कि दिन में निद्रा न आये इसलिये कम-से-कम दिन भर न सोएं। ब्रह्मचर्य का पालन करें। झूठ न बोलें तथा गुस्सा और विवाद भी न करें।।

निर्जला एकादशी व्रत कथा।। Nirjala Ekadashi Vrat Katha.

एक बार जब वेदव्यास जी ने पांडवों भाइयों को पुरुषार्थ चतुष्टय – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। तब भगवान श्रीकृष्ण भी वहीँ थे। उस समय युधिष्ठिर ने पूछा – हे जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का वर्णन कृपा करके कीजिए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन्! इसका वर्णन परम धर्मात्मा व्यासजी करेंगे। क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् हैं।।

तब वेदव्यासजी कहने लगे- एकादशी में अन्न खाना वर्जित होता है। द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर पुष्पादि से भगवान केशव की पूजा करें। फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करें। यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिए। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते।।

यहाँ तक की ये मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं, कि भीमसेन एकादशी को तुम भी भोजन न किया करो। परन्तु मैं उन लोगों से भी यही कहता हूँ, कि मुझसे भूख नहीं सही जाएगी। भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा- यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना।।

भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है। अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। इसलिए महामुनि! मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ। ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा।।

व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो। उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें। अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण हो जाता है।।

इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें। वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि “यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।।”

हे कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो। उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु यानी पानी में खड़ी गाय का दान करना चाहिए। सामान्य गाय या घी से बनी गाय का दान भी किया जा सकता है। इस दिन दक्षिणा और कई तरह की मिठाइयों से ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं।।

निर्जला एकादशी व्रत का माहात्म्य।। Nirjala Ekadashi Mahatmya.

जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है। उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता आदि भी दान करने चाहिए। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।।

जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशी युक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है। भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए।।

ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है। इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी इस निर्जला एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया।।

।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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भागवत प्रवक्ता- स्वामी धनञ्जय जी महाराज "श्रीवैष्णव" परम्परा को परम्परागत और निःस्वार्थ भाव से निरन्तर विस्तारित करने में लगे हैं। श्रीवेंकटेश स्वामी मन्दिर, दादरा एवं नगर हवेली (यूनियन टेरेटरी) सिलवासा में स्थायी रूप से रहते हैं। वैष्णव धर्म के विस्तारार्थ "स्वामी धनञ्जय प्रपन्न रामानुज वैष्णव दास" के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत जी की कथा का श्रवण करने हेतु संपर्क कर सकते हैं।।

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