एक गोपी ने सन्त को ही सत्संग की महिमा बतायी।। Ek Gopi Sant Aur Satsang.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, वृंदावन की एक गोपी ने एक संत की कथा सुनकर भवसागर पार करना उसी संत को सिखाया। सत्संग की महिमा अनंतानंत है, इसका कोई अंत नहीं है। आज के बाद हम भागवत जी की सम्पूर्ण कथा यहाँ आपके साथ मिलकर करेंगे। प्रयत्न करेंगे की भागवत जी की कुछ गूढ़-से-गूढ़ बातें भी आपलोगों को सहजता से समझा पाऊं।
एक बार की बात है, की एक संत भागवत जी की कथा में कह रहे थे। भगवान के नाम की महिमा बता रहे थे।।
सन्त ने कहा भक्तों भगवान के नाम बड़ी महिमा है। भगवान के नाम से बड़े से बड़े संकट भी टल जाते है। नाम तो भव सागर से तारने वाला है। यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत भूलना। कथा समाप्त हुई गोपी अपने घर वापस चली आयी। गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली परन्तु बीच में यमुना जी पड़ती थी। गोपी को संत की बात याद आई। संत ने कहा था, कि भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है।।
भगवान का नाम अगर भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता? इस प्रकार विचार करने के बाद गोपी ने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया। भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई। अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर गई।।
दूसरी पार पहुँचकर गोपी बड़ी प्रसन्न हुई और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया नदी पार करने का। रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने पड़ेगे। एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये। अगले दिन गोपी जब दही बेचने गई, तब संत से अपने घर भोजन करने को कहा संत तैयार हो गए। जब महात्मा जी उस गोपी के साथ उसके पीछे-पीछे जाने लगे।।
सन्त गोपी के साथ चली तो बीच में फिर यमुना नदी आई। संत नाविक को बुलने लगे तब गोपी बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे हैं? हम ऐसे ही यमुना जी में चलेगे। संत बोले – गोपी! कैसी बात करती हो, यमुना जी को ऐसे ही कैसे पार करेगे? गोपी बोली – बाबा! आप ने ही तो रास्ता बताया था। आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है। तब मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते?।।
तभी से मैं ऐसा ही करने लगी इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती। संत को विश्वास नहीं हुआ सन्त गोपी से बोले तू ही पहले चल! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ। गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई। अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से पानी में गिर गए। संत को बड़ा आश्चर्य हुआ परन्तु जब गोपी ने देखा कि संत तो पानी में गिर गए है तब गोपी वापस आई।।
मित्रों, वह गोपी महात्मा जी का हाथ पकड़कर लेकर जब चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे जमीन पर चल रहे हो। संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े। और बोले – कि गोपी तू धन्य है! वास्तव में तो सही अर्थो में नाम का आश्रय तो तुमने ही लिया है। और मै जिसने नाम की महिमा बताई तो सही, पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया। सच में मित्रों हम भगवान के नाम का जप एवं आश्रय तो लेते है। पर भगवान के नाम पर पूर्ण विश्वास नहीं रख पाते।।
यदि सम्पूर्ण भरोसा, विश्वास एवं समर्पण तथा पूरी श्रद्धा नहीं होने से हम इसका पूर्ण लाभ प्राप्त नही कर पाते। भगवान का सिर्फ एक नाम इतने पापों को मिटा सकता है जितना कि एक पापी व्यक्ति अपने पुरे जिंदगी में कभी कर ही नहीं सकता। इसलिए भगवान के नाम पर पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास रखकर ह्रदय के अंतकरण से भाव विहल होकर जैसे एक छोटा बालक अपनी माँ के लिए बिलखता है। उसी भाव से सदैव प्रभु नाम का सुमिरन, संकीर्तन एवं जप करना चाहिये। क्योंकि –
कलियुग केवल नाम अधारा।
सुमिर सुमिर नर उताराहि ही पारा।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।
नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।
।। नमों नारायण ।।