मूर्ति पूजा के बहिष्कारकों को जबाब।। Murtipujak Hun Garv Hai.
जय श्रीमन्नारायण,
लाडली अपने चरणों में रख लो मुझे… इस पतित का भी उद्धार हो जायेगा।
तेरे दर की गुलामी मेरी आरजू, सांवरे का भी दीदार हो जायेगा।।
तेरी करुणा पे मुझ को बड़ा नाज़ है.. इक नज़र से बेडा पार हो जायेगा।।
श्री राधे करुणामयी कहाती है… शरण आये को उर लगाती है।।
जिसका कोई नहीं ज़माने में.. अपना कह कर उसे बुलाती है।।
करती दोषों को क्षमा.. रखे निज हाथ थमा।।
कृपा दृष्टि की निधि बहाती है… मेरी श्यामा करुणामयी कहाती है।।
जिसको ठोकर लगी हो दर दर से.. उसे निज गोद में बिठाती है।।
श्यमा राधे करुणामयी कहाती है।।
लाडली अपने चरणों में रख लो मुझे… इस पतित का भी उद्धार हो जायेगा।
तेरे दर की गुलामी मेरी आरजू, सांवरे का भी दीदार हो जायेगा।।
तेरी करुणा पे मुझ को बड़ा नाज़ है.. इक नज़र से बेडा पार हो जायेगा।।
मित्रों, उपर की उक्तियाँ तो किसी मूर्ति पूजक की ही लगती है। आजकल खूब मूर्ति पूजा के बहिष्कारक नजर आ रहे हैं। लेकिन इनको ये कहाँ पता की जिस दिल में जो जैसे जिस रूप में समां जाय, वो उसे अपने प्राणों से भी प्यारा लगने लगता है। और हमारे पूर्वज कितने विद्वान् रहे होंगें, जिन्होंने समाज के कल्याण का कितना ध्यान रखा।।
कहीं-कहीं प्रतिबन्ध लगाया भी तो ऐसे जगहों पर जहाँ एक से अधिक जान के खतरे की संभावना लगी। वरना कैसा भगवान अच्छा लगता है, ठीक है, वही भगवान सबसे बड़ा है, बाकि सब उसके चाकर हैं, ठीक है? ऐसा क्यों किया गया? क्योंकि किसी की भावनाओं को ठेस न लगे। और ये हमारी उदारता ही है, की आज भी समाज में ऐसे असामाजिक तत्व अपना फन उठाये घूम रहे हैं, वरना आज भी वो दम हैं, कि उनका फन आसानी से कुचला जा सके।।
इस रचना में कितनी गहराई और दर्द तथा भक्ति छुपा है। इस बात का एहसास किसी नकारात्मक सोंच वालो कि हो ही नहीं सकती। आज खुलेआम किसी कि भावनाओं को ठेस पहुंचाना, कितना बड़ा अन्याय है। हम किसी के बारे में जब नहीं बोलते, लोग हमारे पीछे क्यों पड़े रहते हैं। और जब हम अपने धर्म रक्षण के लिए शास्त्र उठायें तो असामाजिक तत्वों में गिनती शुरू हो जाती है।।
शास्त्रों के शब्दों का दुरुपयोग करके समाज में भ्रांतियां फैलाकर हमारे समाज को तोड़ने का प्रयास कोई और करे, ये सम्भव नहीं है। कुछ जैनी साधू ऐसे हैं, जो अपने समाज का नाम लेकर, खुद पाखंड और जड़ता को बढ़ावा देते हैं, और हमारा उपहास उड़ाते हैं। और ये आर्य कहे जाने वाले हमारे समाज में जोंक कि तरह हैं। जो समाज को इतना नुकसान पहुंचा रहे हैं, कि समाज इनका कहा तो मानता नहीं, उल्टे हमारे प्रति भी समाज का संदेह मन में पनप जाता है।।
मैंने सबसे बातें करने का प्रयास किया, कि हमारी संस्कृति पर हो रहे विदेशी धर्मों के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए एकजुटता जरुरी है। लेकिन सबको अपने अहम ने घेर रखा है, और प्रवचन करते हैं, जैसे भगवान ही इनका गुलाम हो। मैं तो कहता हूँ, कि भगवान ही नहीं है, तुम अपनी बात करो ना। किसी भगवान और मुक्ति कि बात ही क्यों करते हो। अरे मूर्खों भगवान से मिलने से ज्यादा जरुरी इन्सान को इन्सान से मिलने में है।।
किस साधना के चक्कर में पड़कर किसी इन्सान को ही मुर्ख बनाकर अपने बड़प्पन को प्रमाणित करने में लग रहे हो। मैं तो जितने ऐसे असामाजिक तत्व हैं, जिन्हें वैदिक सनातन धर्म में खोट नजर आता है, उन्हें मैं खुलेआम चैलेन्ज करता हूँ। दम है, तो मुझसे बात करो और अपना आदर्श प्रस्तुत करो कि किस दृष्टिकोण से तुम्हारा थिंक सही है, और हमारे में खोट।।
अंत में तो हमारे जैसे ही लोग यह कहने का दुस्साहस करते हैं, कि भगवान सबका कल्याण करे। ये बातें जनहित के लिए, कुछ असामाजिक तत्वों के लिए लिखा गया है। लेकिन दिल में समाज हित के आलावा और कुछ नहीं है। सुबह से शाम तक भगवान के सम्मुख बैठकर यही प्रार्थना करने में निकल जाता है, कि प्रभु मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। लेकिन विश्व का कल्याण करो, सबको सुखी रखना हे परमात्मा, भले ही सबका दुःख मुझे दे देना।।
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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।
।। नमों नारायण ।।






































मैं तो कहता हूँ, कि भगवान ही नहीं है, तुम अपनी बात करो ना | किसी भगवान और मुक्ति कि बात ही क्यों करते हो | अरे मूर्खों भगवान से मिलने से ज्यादा जरुरी इन्सान को इन्सान से मिलने में है | किस साधना के चक्कर में पड़कर किसी इन्सान को ही मुर्ख बनाकर अपने बड़प्पन को प्रमाणित करने में लग रहे हो ||
बिल्कुल सही आपने
प्रणाम
!! नमों नारायणाय !!
स्वामी जी ये आपने बहुत अच्छा किया जो ब्लोग लिखने लगे इस्से
हम लोग आप्को बराबर पढ सकेंगे धन्यवाद्
जी दिनेश जी प्रयत्न तो यही करता हूँ, कि सच्चा ज्ञान लोगों तक पहुंचाऊं | और आपके आग्रह पर ये ब्लॉग लिखना जरी ही रहेगा, लेकिन अभी एक मंदिर कि प्रतिष्ठा करवाने में लगा हूँ, जैसे ही पूरा हो जायेगा मैं, फिर से लिखना शुरू कर दूँगा !! नमों नारायणाय !!