परमा एकादशी व्रत कथा एवं विधि।।

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Parama Ekadashi Vrat
Parama Ekadashi Vrat

परमा एकादशी व्रत कथा एवं विधि।। Parama Ekadashi Vrat Katha And Vidhi.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, एक बार कि बात है, कि भगवान कृष्ण और अर्जुन बठकर दरिद्रता निवारण के विषय में कुछ वार्तालाप कर रहे थे। अर्जुन ने पूछा! प्रभु गरीबी अत्यन्त दुखदायी होती है इससे बचने का कोई सहज उपाय बतायें। भगवान कृष्ण ने कहा एक एकादशी का व्रत जो अत्यन्त ही दुर्लभ है, जिसे करने के बाद समस्त दरिद्रता सहज ही दूर हो जाती है और मनुष्य धन-सम्पदा से युक्त होकर संसार के समस्त सुखों का उपभोग करके वैकुण्ठ लोक को प्रस्थान करता है।।

अर्जुन ने कहा, हे कमलनयन! इस विषय में एक और बात आपसे पूछनी है। आपने अधिक मास अथवा मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विस्तारपूर्वक वर्णन मुझे सुनाया। अतः अब आप कृपा करके मुझे अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है तथा इसके व्रत से किस प्रकार के फल की प्राप्ति होती है? तथा उसकी विधि क्या है? इन सब के बारे मे बताइए।।

श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! अधिकमास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है वह परमा एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। परन्तु अधिकमास या मलमास के दो एकादशियों को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशियां हो जाती हैं। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं (जिसमे एक पद्मिनी एकादशी जो शुक्ल पक्ष में आती है और दूसरी परमा एकादशी जो कृष्ण पक्ष में होती है) के नाम से जानी जाती हैं।।

परम एकादशी व्रत विधि।। Parma Ekadashi vrat vidhi.

भगवान श्रीकृष्ण बोले, हे अर्जुन! इस व्रत के पूण्य से सभी पाप सहज ही नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य को इहलोक में सुख तथा परलोक में सद्गति प्राप्त होती है। इसका व्रत विधान के अनुसार ही करना चाहिए। इस व्रत के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद अपने पितरों का श्राद्ध करें। उसके उपरांत भक्ति भाव से युक्त होकर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करनी चाहिए।।

तदुपरान्त ब्राह्मण को फलाहार का भोजन करवायें और उन्हें दक्षिणा दें। इस दिन परम एकादशी व्रत कथा सुनें। एकादशी व्रत को द्वादशी के दिन पारण मुहूर्त में खोलें। भगवान विष्णु का पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए। इस प्रकार यह एकादशी व्रत पूर्ण होता है। अब मैं तुम्हें इस एकादशी व्रत की पावन कथा जो कि महर्षियों के साथ काम्पिल्य नगरी में हुई थी, वह मैं तुमसे कहता हूं। ध्यानपूर्वक श्रवण करो..

परमा एकादशी व्रत कथा।। Parama Ekadashi Vrat Katha.

Parama Ekadashi Vrat

काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी अत्यंत पवित्र एवं एक पतिव्रता स्त्री थी। किसी पूर्व जन्म के पाप के कारण वह दंपती अत्यंत दरिद्रता का जीवन व्यतीत कर रहे थे। यहाँ तक की ब्राह्मण को भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी। उस ब्राह्मण की पत्नी वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने पति की सेवा करती थी। साथ ही अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी। पति से कभी किसी वस्तु की मांग नहीं करती थी। दोनों पति-पत्नी घोर निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे थे।।

एक दिन ब्राह्मण अपनी पत्नी से बोला: हे प्रिय! जब मैं धनवानों से भी धन की याचना करता हूँ तो वह मुझे मना कर देते हैं। गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती, इसलिए यदि तुम्हारी सहमति हो तो मैं परदेश जाकर कुछ काम करूं, क्योंकि विद्वानों ने भी कर्म एवं कर्मठ पुरुषों की प्रशंसा की है।।

ब्राह्मण की पत्नी ने विनीत भाव से कहा: हे स्वामी! मैं आपकी दासी हूँ। पति अच्छा और बुरा जो कुछ भी कहे, पत्नी को वही करना चाहिए। मनुष्य को पूर्व जन्म में किए कर्मों का फल इस जन्म में मिलता है। सुमेरु पर्वत पर रहते हुए भी मनुष्य को बिना भाग्य के स्वर्ण नहीं मिलता। पूर्व जन्म में जो मनुष्य विद्या और भूमि दान करते हैं, उन्हें अगले जन्म में विद्या और भूमि की प्राप्ति होती है। ईश्वर ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे टाला नहीं जा सकता।।

यदि कोई मनुष्य दान नहीं करता तो प्रभु उसे केवल अन्न ही देते हैं। इसलिए आपको इसी स्थान पर रहना चाहिए। क्योंकि मैं आपका विछोह नहीं सह सकती। पति बिना स्त्री की माता, पिता, भाई, श्वसुर तथा सम्बंधी आदि सभी निंदा करते हैं। हसलिए हे स्वामी! कृपा कर आप कहीं न जाएं, जो भाग्य में होगा, वह यहीं प्राप्त हो जाएगा।।

पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया। इसी प्रकार समय बीतता रहा। एक बार कौण्डिन्य ऋषि वहां आए। ऋषि को देखकर ब्राह्मण सुमेधा और उसकी पत्नी ने आदर सहित उन्हें प्रणाम किया और बोले: आज हम धन्य हुए। आपके दर्शन से आज हमारा जीवन सफल हुआ। ऋषि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया। भोजन कर लेने के उपरांत पतिव्रता ब्राह्मणी ने कहा: हे ऋषिवर! कृपा कर आप मुझे दरिद्रता का नाश करने की विधि बतलाइए। मैंने अपने पति को परदेश में जाकर धन कमाने से रोका है। मेरे भाग्य से आप आ गए हैं। इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है, कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी। अतः आप हमारी दरिद्रता को दूर करने के लिए कोई सहज उपाय बताएं।।

ब्राह्मणी की बात सुन कौण्डिन्य ऋषि बोले: हे ब्राह्मणी! अधिक मास अथवा मल मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के व्रत से सभी पाप, दुःख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है। इस व्रत में नृत्य, गायन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है। धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया। इसी व्रत के प्रभाव से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री और राज्य की पुनः प्राप्ति हुई थी।।

तदुपरांत कौण्डिन्य ऋषि ने उन्हें एकादशी के व्रत का समस्त विधान कह सुनाया। ऋषि ने कहा: हे ब्राह्मणी! पंचरात्रि व्रत इससे भी ज्यादा उत्तम माना जाता है। परमा एकादशी के दिन प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर विधानपूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए। जो मनुष्य पांच दिन तक निर्जला रहकर इस व्रत को करते हैं, वे अपने माता-पिता और पत्नी के सहित स्वर्ग लोक को जाते हैं। जो मनुष्य पांच दिन तक संध्या को भोजन करते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं।।

Parama Ekadashi Vrat

जो मनुष्य स्नान करके पांच दिन तक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, वे समस्त संसार को भोजन कराने का फल पाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत में अश्व दान करते हैं, उन्हें तीनों लोकों को दान करने का फल मिलता है। जो मनुष्य उत्तम ब्राह्मण को तिल दान करते हैं, वे तिलों की संख्या के बराबर के वर्षो तक विष्णुलोक में निवास करते हैं। जो मनुष्य घी का पात्र दान करते हैं, वह सूर्य लोक को जाते हैं। जो मनुष्य पांच दिन तक ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हैं, वे देवांगनाओं के साथ स्वर्ग को जाते हैं। हे ब्राह्मणी! तुम अपने पति के साथ इसी व्रत को धारण करो। इससे तुम्हें अवश्य ही सिद्धि और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होगी।।

कौण्डिन्य ऋषि के कथनानुसार ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने परमा एकादशी का व्रत पांच दिनों तक किया। व्रत पूर्ण होने पर ब्राह्मण की पत्नी ने एक राजकुमार को अपने यहाँ आते देखा। राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से एक उत्तम घर जो कि सब वस्तुओं से परिपूर्ण था, उन्हें रहने के लिए दिया। तदुपरांत राजकुमार ने आजीविका के लिए एक गांव दिया। इस प्रकार ब्राह्मण और उसके पत्नी की गरीबी दूर हो गई और पृथ्वी पर काफी वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात वे पति-पत्नी भगवान श्रीविष्णु के उत्तम लोक वैकुण्ठ को प्रस्थान कर गए।।

हे पार्थ ! जो मनुष्य “परमा एकादशी” के इस परम पावन व्रत को करता है, उसे समस्त तीर्थों एवं यज्ञों आदि के करने का सम्पूर्ण फल अनायास ही प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार संसार में चार पैरवालों में गौ, देवताओं में देवराज इन्द्र श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार मासों में अधिक मास अत्यन्त उत्तम माना गया है। इस मास में पंचरात्रि व्रत अत्यन्त पुण्यदायिनी मानी जाती है। इस अधिक मास के कृष्ण पक्ष में “पद्मिनी एकादशी” का व्रत भी अत्यन्त श्रेष्ठ माना गया है। इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती है।।

।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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भागवत प्रवक्ता- स्वामी धनञ्जय जी महाराज "श्रीवैष्णव" परम्परा को परम्परागत और निःस्वार्थ भाव से निरन्तर विस्तारित करने में लगे हैं। श्रीवेंकटेश स्वामी मन्दिर, दादरा एवं नगर हवेली (यूनियन टेरेटरी) सिलवासा में स्थायी रूप से रहते हैं। वैष्णव धर्म के विस्तारार्थ "स्वामी धनञ्जय प्रपन्न रामानुज वैष्णव दास" के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत जी की कथा का श्रवण करने हेतु संपर्क कर सकते हैं।।

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