वास्तविकता में धर्म किसे कहते हैं?।। Vastvik Dharm Kya Hai.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, असल में धर्म है क्या? आइये आज इस विषय पर चर्चा करते हैं। शास्त्र कहता है, कि “जीवनं वर्धनम् चापि धृयते सः धर्मः = जीवन एवं वर्धन को जो धारण करता है उसे ही धर्म कहते हैं।। Bhagwat Pravakta – Swami Dhananjay Maharaj. #What is the Actual religion
मित्रों, प्रकृति के वे नियम एवं सिद्धान्त जिनके आधार पर यह प्रकृति उत्पन्न हुई एवं चलती है। उन्ही नियमों ने प्रकृति को धारण कर रखा है। उसे ही हमारी संस्कृति एवं सभ्यता में ”धर्म” कहा गया है। ”धृ” धातु से उत्पन्न इस शब्द का अर्थ है = जो धारण करता है अब प्रश्न है, कि किसको? उत्तर है: जो हमारे अस्तित्व को धारण करे उसको।।
“जीवनं वर्धनम् चापि धृयते सः धर्मः” = जीवन एवं वर्धन को जो धारण करता है उसे ही धर्म कहते हैं। यह कभी अनेक नहीं होता, यह सार्वभौमिक, शाश्वत एवं सनातन है। पृथ्वी पर मनुष्य के समूहों ने इसे नाना नाम दिए या नहीं दिए। पर भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता ने इसे ‘धर्म’ कहा। यह जीवन का सनातन सत्य भी है और सबसे बड़ा विज्ञान भी यही है साथ ही यह मनुष्य -निर्मित नहीं है।।
यदि मनुष्य इस धर्म के अनुसार अपना जीवन-यापन करता है, तो उसका अस्तित्व सुरक्षित रहता है। साथ ही प्रतिपल प्रत्येक जीव का उत्थान एवं विकास होता है। इस पृथ्वी पर आजतक ऐसा कोई जीव नहीं हुआ जिसने, जाने या अनजाने या किसी भी प्रकार से ”धर्म” का उल्लंघन कर के कभी विकास किया हो। मनुष्य सहित समस्त जीव एवं अजैविक पदार्थ भी भाँति-भाँति के हैं। परन्तु प्रत्येक को अपने सिद्धान्तों के अनुसार इसका पालन करना ही होता है।। #What is the Actual religion
यह प्रकृति स्वभाव से ही विविधताओं को जन्म देती है। इस प्रकृति में आजतक एक समान किन्ही दो चीजों की सृष्टि नहीं हुई। सृष्टि का मूल “एक” है। पर सृष्टि “अनेक” है। “एक” ने “अनेक” रूप धारण किए हैं। जैविक विविधताएँ ही जीवन का आधार हैं। शत-प्रतिशत एकरूपता एवं सदृश्यता प्रकृति में सम्भव नहीं है।।
प्रकृति एवं जीवन सिखाते हैं:- प्रेम, सहयोग, पारस्परिकता एवं एकसूत्रता। इसका कम सभी विविधताओं को स्वीकारते हुए, सभी का सम्मान करते हुए एवं जिसको जैसा पोषण चाहिए उसको वैसा पोषण उपलब्ध कराते हुए आगे बढ़ते रहना है। जो अशक्त है उन्हें सशक्त करना है। एक-दूसरे का सहारा बनकर वृद्धि के पथ पर हमें आगे चलना है।।
कोई वंचित न हो और कोई शोषित न हो, यही धर्म का मार्ग है। यही “सनातन धर्म” है। सकल सृष्टि के लिए, इसे हम कुछ भी नाम दे सकते हैं या नाम नहीं भी दे सकते है। अतः हमें शास्त्रानुसार तपस्या और साधना करनी चाहिए। दानादि श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करना चाहिए। उसके बाद सूत्र जो बचता है, उसका नाम “इंतजार” है।। #What is the Actual religion
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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।
।। नमों नारायण ।।