काल्ह करे सो आज कर आज करे सो अब।। kal kare so aaj kar aaj kare so ab.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, एक दिन महाराज युधिष्ठिर राजभवन में बैठे एक मंत्री से बातचीत कर रहे थे। किसी समस्या पर गहन विचार चल रहा था। तभी एक ब्राह्मण वहाँ पहुँचा। कुछ दुष्टों ने उस ब्राह्मण को सताया था। उन्होंने ब्राह्मण की गाय उससे छीन ली थी। वह ब्राह्मण महाराज युधिष्ठिर के पास फरियाद लेकर आया था। मंत्री जी के साथ बातचीत में व्यस्त होने के कारण महाराज युधिष्ठिर उस ब्राह्मण की बात नहीं सुन पाए।।
उन्होंने ब्राह्मण से बाहर इन्तजार करने के लिए कहा। ब्राह्मण मंत्रणा भवन के बाहर रूक कर महाराज युधिष्ठिर का इंतज़ार करने लगा। मंत्री से बातचीत समाप्त करने के बाद महाराज ने ब्राहमण को अन्दर बुलाना चाहा। लेकिन तभी वहाँ किसी अन्य देश का दूत पहुँच गया। महाराज फिर बातचीत में उलझ गए। इस तरह एक के बाद एक कई महानुभावों से महाराज युधिष्ठिर ने बातचीत की।।
अंत में सभी को निबटाकर जब महाराज भवन से बाहर आये तो उन्होंने ब्राहमण को इंतज़ार करते पाया। काफी थके होने के कारण महाराज युधिष्ठिर ने उस ब्राहमण से कहा- अब तो मैं काफी थक गया हूँ। आप कल सुबह आइयेगा। आपकी हर संभव सहायता की जाएगी। इतना कहकर महाराज अपने विश्राम करने वाले भवन की ओर चले गए। ब्राह्मण को महाराज युधिष्ठिर के व्यवहार से बहुत निराशा हुई। वह दुखी मन से अपने घर की ओर लौटने लगा।।
अभी वे ब्राह्मण मुडे ही थे, की उसकी मुलाकात महाराज युधिष्ठिर के छोटे भाई भीम से हो गई। भीम ने ब्राहमण से उसकी परेशानी का कारण पूछा। ब्राह्मण ने भीम को सारी बात बता दी। साथ ही वह भी बता दिया की महाराज ने उसे अगले दिन आने के लिए कहा है। ब्राहमण की बात सुकर भीम बहुत दुखी हुये। भीमसेन को महाराज युधिष्ठिर के व्यवहार से भी बहुत निराशा हुई।।
उन्होंने मन ही मन कुछ सोचा और फिर द्वारपाल को जाकर आज्ञा दी। सैनिकों से कहो की विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजाएं। आज्ञा का पालन हुआ। सभी द्वारों पर तैनात सैनिकों ने विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजाने शुरू कर दी। महाराज युधिष्ठिर ने भी नगाड़ों की आवाज़ सुनी। उन्हें बड़ी हैरानी हुई। नगाड़े क्यों बजाये जा रहे हैं? यह जानने के लिए वह अपने विश्राम कक्ष से बाहर आये।।
कक्ष से बाहर निकलते ही उनका सामना भीम से हो गया। उन्होंने भीम से पूछा- विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े क्यों बजाये जा रहे हैं? हमारी सेनाओं ने किसी शत्रु पर विजय प्राप्त की है? भीम ने नम्रता से उत्तर दिया। महाराज, हमारी सेनाओं ने तो किसी शत्रु पर विजय प्राप्त नहीं की। तो फिर ये नगाड़े क्यों बज रहें हैं? महाराज ने हैरान होते हुए पूछा। क्योंकि पता चला है, की महाराज युधिष्ठिर ने काल पर विजय प्राप्त कर ली है। भीम ने उत्तर दिया।।
भीम की बात सुनकर महाराज की हैरानी और बढ़ गई। उन्होंने फिर पुछा- मैंने काल पर विजय प्राप्त कर ली है। आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?। भीम ने महाराज की आँखों में देखते हुए कहा- महाराज! अभी कुछ देर पहले आपने एक ब्राहम्ण से कहा था की वह आपको कल मिले। इससे साफ़ जाहिर है, कि आपको पता है की आज आपकी मृत्यु नहीं हो सकती। आज काल आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।।
यह सुनने के बाद मैंने सोचा की अवश्य आपने काल पर विजय प्राप्त कर ली होगी। अगर ऐसा नहीं होता तो आप उस ब्राहमण को कल मिलने के लिए नहीं कहते। यह सोच कर मैंने विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजने की आज्ञा दी थी। भीम की बात सुनकर महाराज युधिष्ठिर की आँखे खुल गई। उन्हें अपनी भूल का पता लग चुका था। तभी उन्हें पीछे खड़ा हुआ ब्राहमण दिखाई दिया। उन्होंने उसकी बात सुनकर तत्काल उसकी सहायता का आवश्यक प्रबंध करवाया।।
इस कथा से हमें यह सिख मिलती है, कि हमें कोई भी कार्य कल पर नहीं टालना चाहिये। क्योंकि कल पर तलने वाले अक्सर दुखी देखे गए हैं। जिंदगी में जितनी तत्परता रहेगी उतनी ही उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे।।
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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।
।। नमों नारायण ।।